"विकिसूक्ति:स्वशिक्षा": अवतरणों में अंतर

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मुझे ऐसा लग रहा है कि हमारा देश भारत अब गृह युद्ध की विभिसिकाओं की तरफ अब जाने लगा है I वर्त्तमान तंत्र के खिलाफ आम जनता में बड़ा आक्रोश व्याप्त है I गैंगरेप के खिलाफ कितना भड़क चुका है गुस्सा.. यह यही संकेत करता है I सत्ता परिवर्तन अब इसी अंदाज में करने के लिए भारत कि आम जनता मुड़ बना चुकी है Iजंग का मैदान बना जंतर मंतर I पीड़िता के समर्थन के लिए दिल्ली के इंडिया गेट पर फूटा नौजवानों का गुस्सा I एक ऐसा मूवमेन्ट खड़ा कर दिया जिससे अब सरकार ही खौफ खा रही है। पूरी सरकार के सामने पीड़िता को न्याय से ज्यादा यह आंदोलन ही एक चुनौती बन गया है।आंदोलन में भाग लेने वाले नौजवान न तो किसी संस्था संगठन से जुड़े हैं और न ही किसी राजनीतिक दल से उनका कुछ लेना देना है। ज्यादातर लोग दिल्ली के किसी न किसी शैक्षणिक संस्थान में पढ़ाई करनेवाले नौजवान हैं।दिल्ली में कड़ाके की सर्दी शुरू हो गई है और कोहरे का भयानक आलम है, लेकिन इन तकलीफों से बेफिक्र नौजवान उस पीड़ित लड़की के लिए अपने जान की बाजी लगाकर न्याय मांग रहे हैं।
बलात्कार का अत्याचार
दिल्ली में एक बच्ची के साथ जो नर अपराध घटित हुआ उसके बाद लड़की और उसके साथी को चलती गाड़ी से नीचे फेंकने की घटना अत्यन्त अमानवीय थी। घटना के पूर्व इन्ही अपराधियों ने एक व्यक्ति से आठ हजार रूपये लूटकर उसे भी चलती गाडी से धक्का दे दिया था। जिस दिन दिल्ली में यह घटना हुई उसी दिन दिल्ली एनसीआर में एक महिला ने अपने जीवित पति के ग्यारह टुकडे करके लाश के टुकडे बाहर फेंक दिये थे। दोनो घटनायें एक ही दिन की है। एक के बारे में अब हम भलीं भांति जानते हैं और दूसरे के बारे में हमने शायद सुना भी नहीं होगा।
इंडिया गेट पर तूफान आया और सरकार ने उस तूफान को रोकने के लिए सारी मर्यादाएं ताक पर रख दीं। देशभर की आधुनिक महिलाओं ने पहल करके इस घटना पर रोष व्यक्त किया। संसद में जमकर हंगामा हुआ जिसमें सभी राजनैतिक दलों की महिला सांसदो ने एक से बढकर एक तरीके से अपना आक्रोश व्यक्त किया। कोई भी सांसद महिला किसी अन्य से जरा भी पीछे नहीं दिखना चाहती थी। सुषमा स्वराज ने मांग की कि अपराधियों को जल्दी से जल्दी फांसी दी जाये। जया बच्चन अपनी भावनाएं व्यक्त करते समय फफक फफक कर रो पडीं। सोनिया गॉंधी ने तत्काल ही मुख्यमंत्री को एक कड़ा पत्र लिखा और पीडित लड़की से मिलने गई। गिरिजा व्यास ने भी बहुत ही मार्मिक भाषण दिया। न्यायपालिका भी इस घटना मे पीछे नही रही। न्यायाधीश ज्ञानसुधा जी ने ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के उपाय करने की बात कही। उच्च न्यायलय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पूरे मामले की स्वतः निगरानी करने की बात कही। मीडिया जगत भी बहुत आगे आगे दौड़ रहा था। कई दिनों तक लाइव चर्चा चलती रही। नीरजा चौधरी जी एक प्रतिनिधि मंडल के साथ मुख्यमंत्री से मिलकर अपने सुझाव दे आई और अपना निवेदन भी कर आई। मुख्यमंत्री ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की घोषणा कर दी। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने बेसिर पैर का सुझाव दिया कि बलात्कार के अपराधियों को नपुंसक बना दिया जाय तथा फॉंसी भी दी जाय।
सरकार के अनेक मंत्रालयों ने अपने अपने तरीके से प्रशासनिक रोकथाम के उपाय किये। खुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक कोर्ट आफ इन्क्वारी का गठन भी कर दिया और पूरे देश से सुझाव भी मांग रहा है कि महिलाओं की सुरक्षा के सुझाव सरकार को दे। इंडिया गेट और जंतर मंतर की घटनाओं से अब हर कोई दो चार है। छात्र नौजवानों के अलावा टीम अरविन्द केजरीवाल ने भी प्रदर्शन करके अपनी भावनाएं रखीं। भाजपा की महिला सांसदो ने कुछ पुरूष सांसदो के साथ जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया और अपराधियों को फॉंसी देने की मॉंग की। किरण बेदी ने भी इस संबंध मे अपना पक्ष और सुझाव रखे। दिल्ली के बाहर मुबईं मे तथा अन्य शहरों मे भी प्रदर्शन हुए। अधिकांश लोगो ने अपराधियों को फॉंसी तक देने की मॉंग की। अधिकांश लोगों ने बलात्कार के विरूद्ध कठोर कानून बनाने की मांग की। अधिकांश लोगों ने पुलिस विभाग की निष्क्रियता के विरूद्ध जमकर गुस्सा निकाला। उच्च न्यायलय ने भी पुलिस विभाग से प्रश्न पूछा कि गाडी में परदे लगे थे लाइट बुझी थी गाडी के रास्ते मे पॉंच चेक पोस्ट पार हुए फिर भी गाडी कहीं रोकी क्यों नही गई। अनेक शहरों मे कैन्डिल मार्च निकाला गया जिसमें महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा थी। कई जगह प्रार्थनाएं भी हुर्इ्र और यज्ञ भी हुए। सारे देश मे बलात्कार के विरूद्ध एक तूफानी आक्रोश दिखा। ऐसा महसूस हुआ जैसे सम्पूर्ण भारत बलात्कार के विरूद्ध डटकर खडा हो गया है। अब भविष्य में यदि बलात्कार समाप्त नहीं भी होंगे तो कम तो जरूर हो जायेगें। अब छात्र नौजवान, न्यायपालिका, विधायिका, पुलिस, पत्रकार, स्वयंसेवी संगठन, मानवाधिकार संगठन, अधिवक्तागण आदि सभी समूह बलात्कार के विरूद्ध ईमानदारी से एकजुट हो गयें हैं। अब बलात्कार तो इन संगठित ताकतो के समक्ष टिक नहीं सकता।
इंडिया गेट, जंतर मंतर से लेकर पूरे देश में जो आक्रोश दिखा उससे ऐसा लगा जैसे ऐसी घटना भारत मे पहली बार हुई हो जिसने बलात्कार और हिंसा के सम्बन्ध मे भारत के उज्जवल रेकार्ड को कलंकित कर दिया हो। जबकि भारत मे सिर्फ दिल्ली मे ही पिछले दस वर्षों में बलात्कार या बलात्कार और हत्या की घटनाऐं आठ गुनी तक बढ गई हैं। दिल्ली की आबादी दस वर्षो मे मात्र दो गुनी हुई और बलात्कार हत्या आठ गुनी। देश के अन्य भागों मे भी यह वृद्वि दर लगभग ऐसी ही है। भारत का जो क्षेत्र पारंपरिक जीवन जी रहा है और अल्पशिक्षित अविकसित है वहॉं ऐसी बलात्कार वृद्धि का प्रतिशत कम है और विकसित शिक्षित आधुनिक क्षेत्रों मे ज्यादा। यह कोई अप्रत्याशित नई घटना नहीं थी। दूसरी बात यह भी थी कि बलात्कार करने वाले कोई ऐसे स्थापित व्यक्तित्व नही थे जिन्होने बलात्कार करने और छिपाने में अपने राजनैतिक आर्थिक प्रशासनिक शक्ति का उपयोग किया हो। बलात्कार करने वाले सबके सब सामान्य स्तर के आपराधिक प्रवृत्ति के लोग थे जो इस तरह के कृत्यो मे पूर्व मे भी पकडे जाकर न्यायालयों से छूटते रहें हैं। विदित हो कि इनसे भी कई गुना ज्यादा खूंखार अपराधी जिस पर हत्या जैसे अपराधों के सैकडों प्रकरण हैं वह इसी दिन एक नागरिक मुठभेड़ में मारा गया किन्तु उसके इतने गंभीर अपराधो की चर्चा तक नही हुई। फिर क्या कारण रहा कि यह प्रकरण इतना ज्यादा उछला?
मैंने इस प्रकरण को कई तरह से समझा। सभी राजनैतिक दल, मीडियाकर्मी, सामाजिक संस्थाओं के लोग अपने अपने महिला सहयोगियों को ही आगे क्यों कर रह थे? क्या यह प्रकरण महिलाओं पर पुरूषों का अत्याचार था या अपराध शरीफों पर? एक प्रश्न बार बार उठाया गया कि ऐसी बलात्कार की घटनाएं सिर्फ महिलाओं के विरूद्ध ही क्यों होती है? मै नही समझा कि प्रश्नकर्ताओं का आशय क्या है? बलात्कार का तो प्राकृतिक स्वरूप ही महिलाओं तक सीमित है। फिर ऐसा प्रश्न क्यों? हमेशा ही युद्ध के समय भी पुरूष मारे जाते रहें हैं और महिलाएं बलात्कार का शिकार हुई हैं। आज भी पुरूषों के साथ होने वाले अपराधों का चरित्र कुछ भिन्न तथा महिलाओं के विरूद्ध अपराधो मे बलात्कार का उपयोग होता है। भारत पाकिस्तान दंगों या गुजरात दंगों का इतिहास भी ऐसा ही एकपक्षीय रहा है। इस घटना को महिलाओं के विरूद्ध पुरूषों का अत्याचार स्थापित करके महिला पुरूष के बीच के सांमजस्य को वर्ग संघर्ष मे बदलना तो इन सबका उद्येश्य नही था? कहीं ऐसा तो नही था कि बढते हुए बलात्कार में अपनी अक्षमता के संभावित छींटों के डर से विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया, समाजसेवी, मानवाधिकार संगठन पहले ही जोर जोर से चिल्ला कर अपना दामन बचाते रहे हों? कहीं ऐसा तो नही कि दिल्ली के संभावित विधानसभा चुनावों के लाभ हानि के गणित का आंकलन करके राजनैतिक दल आक्रमण और बचाव के मार्ग खोजते रहे हों? पीड़िता को न्याय दिलाने के इस हो हल्ले में एक स्वर से फांसी की बात उठी किन्तु फांसी विरोधी ग्रुप बिल्कुल चुपचाप किनारे छिपा रहा। वैसे भी फांसी की मांग करने वाले यह भूल जाते है कि यदि बलात्कार मे फांसी होगी तो बलात्कार और हत्या एक साथ होगी तब क्या होगा?
पिछले कई दिनो से जो आंदोलन चल रहा है, इंडिया गेट प्रकरण के बाद उसने अपनी दिशा बदली है। अब यह आंदोलन राजनैतिक दिशा में चला जायेगा और धीरे धीरे वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के विरोध की दिशा बढ जाएगा। बलात्कार की घटना तो एक बहाना मात्र थी। आगे क्या होगा यह समय बतायेगा किन्तु यदि बलात्कार की इस घटना को आधार बनाकर भी कुछ आवाज उठती है तो परिणाम अच्छा ही होगा।
यह सब होते हुए भी हमे यह तो विचारना ही होगा कि भारत में लगातार बढ रही बलात्कार की घटनाओं का दोषी कौन? स्वाभाविक है कि स्वतंत्रता के बाद जबसे तंत्र से जुड़ी विभिन्न इकाइयों ने बलात्कार रोकने का काम सम्हाला है तब से ये घटनाएं दिन दूनी रात चौगुनी बढ रही है। तंत्र से जुडी वह इकाई तो दोषी नहीं जो विवाह की उम्र बढाने या वैष्यावृत्ति, बार-बालाओ पर रोक जैसी बे सिर पैर की बाते करके अप्रत्यक्ष रूप से बलात्कार की परिस्थितियों का विस्तार कर रही है अथवा वह इकाई तो दोषी नहीं जो जूआ शराब गुटखा और तम्बाकू निषेध जैसे गैर आपराधिक कार्यो को अपराध बना बना कर पुलिस और न्यायालय का भार बढ़ाती जा रही है? कही वे लोग तो दोषी नही जो परिवार व्यवस्था को कमजोर करने को ही आधुनिकता समझ रहे हो अथवा वे भी दोषी हो सकते है जो स्त्री पुरूष के बीच की दूरी घटाने में स्वाभाविक से ज्यादा तेज गति से दौड़ रहे हैं और उसके परिणाम मे बलात्कार बढ रहे हैं। कारण चाहे जो भी हो किन्तु है इन्ही तंत्र से जुडी इकाइयों के बीच जो इकाइयां इस बलात्कार की घटना को आधार बनाकर इतना विरोध प्रदर्शन कर रही थी।
इस समस्या के समाधान की भी चर्चा करनी होगी। भारत मे बढ रहे बलात्कार और हिंसा सिर्फ प्रशासनिक समस्या तक सीमित नहीं है। एक सर्वमान्य सिद्धान्त है कि यदि समाज मे कुल आबादी के एक डेढ प्रतिशत से कम अपराध होते है तो वह प्रशासनिक समस्या होती है किन्तु यदि अपराध दो प्रतिशत से भी ऊपर हो जावे तो नीतियों मे परिवर्तन की जरूरत बन जाती है। यदि अपराध तीन चार प्रतिशत से भी पार कर जावे तो वह सामाजिक चिन्ता का आधार बनती है और यदि अपराध पांच प्रतिशत से भी ऊपर हो जावे तो आपातकाल समझकर धर्म, समाज, राज्य सबको मिल बैठकर समाधान खोजने चाहिये। ऐसा लगता है कि भारत मे अपराध नियंत्रण की समस्या प्रशासनिक सीमा से पार कर रही है। नीतिगत बदलावों की जरूरत हैं। आवश्यक हो तो सामाजिक हस्तक्षेप भी करना चाहिये। यदि कोई समस्या तंत्र से जुडी इकाइयां नहीं सम्हाल पा रही है तो उसे सामाजिक बहस मे शामिल करना जरा भी गलत नही है।
सबसे पहला काम तो यह होना चाहिये कि आधुनिक महिलाएं ऐसे बलात्कार के मामलो के चिन्तन मे अपनी जोर जबरदस्ती मत करें। समाज के सभी स्त्री पुरूष वर्ग एक साथ बैठकर सोचें। दूसरा काम यह हो कि तंत्र से जुडी विभिन्न इकाइंया भी आत्ममंथन करें कि उनसे कहां भूल हो रही है। एक स्त्री अपने पति के ग्यारह टुकडे कर के फेंक दे तो वे महिलाएं जरा भी चिन्तित न हों जो किसी अपराधी पुरूष द्वारा जघन्य बलात्कार के लिये पुरूष समाज को ही कटघरे में खड़ा करती रहती हैं। न्यायपालिका हमारी एक जिम्मेदार इकाई होते हुए भी तंत्र का ही एक हिस्सा है। उसकी भूमिका सिर्फ पुलिस या सरकार को फटकार लगाने तक सीमित नहीं है। यदि कोई जग्गु पहलवान सैकड़ों अपराध करके भी खुला घूमता है या जमानत पर है तो प्रश्न सिर्फ पुलिस और सरकार तक ही सीमित नही रहेंगे। आपको भी उत्तर देना होगा कि मुकदमें मे इतनी देरी मे आप कितने गंभीर हैं। यदि अपराध नियंत्रण में है तो पुलिस तक उत्तरदायी है किन्तु यदि बढते हैं तो सरकार तक आंच आती है। यदि तेज गति से बढते है तो सम्पूर्ण संसद को उत्तर देना होगा और यदि अनियंत्रित है तो सम्पूर्ण व्यवस्था उत्तरदायी होती है जिसमे न्यायपालिका भी शामिल है। यदि ऐसा महसूस होता है कि बलात्कार की घटनाएं अनियंत्रित है तो सब लोग एक दूसरे पर दोषारोपण करने का खेल बन्द करे और मिलबैठकर इसका समाधान खोजे अन्यथा इस प्रकार एक दूसरे पर दोषारोपण लोकतंत्र की जड़ों को ही खोखला कर देगा।