• विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपात: शतमुख: । -- नीतिशतकम्
जिनका विवेक भ्रष्ट हो गया , उनका पतन सेकङो प्रकार से होता है ।
  • नीर-क्षीर-विवेके हंसालस्य त्वमेव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः ॥
हे हंस यदि तुम दूध और पानी को अलग करने में आलस्य करोगे तो इस संसार में दूसरा कौन अपने कुल की मर्यादा का पालन करेगा? यदि तुम ही गुण और दोषों को समझने में आलस्य करोगे और उचित अनुचित का निर्णय नहीं करोगे तो इस संसार में दूसरा कोन अपने कुलव्रत का पालन करेगा?
  • सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः॥ -- कीरातार्जुनीयम्
किसी भी कार्य को आवेश में आ कर या बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवेक का शून्य होना विपत्तियों को बुलावा देना है | जबकि जो व्यक्ति सोंच-समझकर कार्य करता है, ऐसे व्यक्तियों को माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।
  • विवेकः सह सम्पत्या विनयो विद्यया सह।
प्रभुत्वं प्रश्रयोपेतं चिन्हमेतन्महात्मनाम्॥
विवेक और संपत्ति, विद्या और विनय, तथा प्रभुत्व (ताकत) और सौम्यता को साथ-साथ रखना ही महान व्यक्ति के लक्षण हैं।
  • पापं प्रज्ञां नाशयति क्रियमाणं पुनः पुनः ।
नष्टप्रज्ञः पापमेव नित्यमारभते नरः ॥-- महाभारत, उद्योगपर्व
बार-बार पाप करने से मनुष्य की विवेक बुद्धि नष्ट होती है और जिसकी विवेक बुद्धि नष्ट हो चुकी हो, ऐसा व्यक्ति सदैव पाप ही करता है।
  • पुण्यं प्रज्ञां वर्धयति क्रियमाणं पुनः पुनः ।
वृद्ध प्रज्ञः पुण्यमेव नित्यमारभते नरः ॥ -- महाभारत, उद्योगपर्व
बार-बार पुण्य करने से मनुष्य की विवेक बुद्धि बढ़ती है और जिसकी विवेक-बुद्धि बढ़ती रहती हो, ऐसा व्यक्ति हमेशा पुण्य ही करती है।
  • मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक॥ -- तुलसीदास
तुलसीदासजी कहते हैं कि मुँह खाने पीने का काम अकेला करता है, लेकिन वह जो खाता पीता है, उससे शरीर के सारे अंगों का पालन पोषण करता है। इसलिए मुखिया को भी ऐसे ही विवेकवान होकर वह अपना काम अपने तरह से करे लेकिन उसका फल सभी में बाँटे।
  • तुलसी साथी विपति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृत सुसत्यव्रत राम-भरोसो एक॥ -- दोहावली
विद्या, विनय, विवेक, साहस, अच्छे काम, सत्य - ये सभी बुरे समय के साथी होते हैं, इनकी मदद से हर विपत्ति दूर हो सकती है।
  • तुलसी असमय के सखा , धीरज धर्म विवेक।
  • साहित साहस सत्यव्रत , राम भरोसो एक ॥ -- रामचरितमानस
  • विवेक, बुद्धि की पूर्णता है। जीवन के सभी कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है। -- ब्रूचे
  • विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान , सतत प्रसन्नता है। -- मान्तेन
  • उपासना के द्वारा विवेक उत्पन्न होता विवेकी होने से क्षणिक वस्तुओं से सुख और आनंद यह दोनों नहीं होते। -- स्वामी दयानन्द
  • विवेकी मनुष्य को पाकर गुण सुंदरता को प्राप्त होते हैं। -- चाणक्य
  • अपने विवेक को अपना शिक्षक बना शब्दों का कर्म से और धर्म का शब्दों से मेल कराओ। -- शेक्सपियर
  • शाश्वत विचार ही विवेक है। -- स्वामी रामतीर्थ
  • विवेक सच्चा ज्ञान जानने में है, कुछ भी नहीं। -- सुकरात
  • ज्ञान भूत है , विवेक भविष्य।
  • जो व्यक्ति विवेक के नियम को तो सीख लेता है पर उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारता वह ठीक उस किसान की तरह है, जिसने अपने खेत में मेहनत तो की पर बीज बोये ही नहीं।- शेख सादी

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  • अंतःकरण के मामले में बहुमत के नियम का कोई स्थान नहीं हैं। – महात्मा गांधी
  • यदि मनुष्य अपने अंतःकरण की शक्ति को पहचान ले, तो उसे कोई कार्य असंभव नहीं लगेगा। – अज्ञात
  • मानव का अंतःकरण ही ईश्वर की वाणी हैं। – वायरन
  • अंतःकरण आत्मा की वाणी है, जैसे कि वासनाएं शरीर की। इसमें आश्चर्य ही क्या, यदि वे एक दुसरे का खंडन करती हैं। – रूसो
  • ईश्वर को प्राप्त करने और समझने से पहले अपने अंतःकरण को समझे।
  • आत्मा जिस कार्य से सहमत न हो उस कार्य के करने में शीघ्रता ने करो। – गणेश वर्णी
  • मनुष्य का अंतःकरण उसके आकार, संकेत, गति, चेहरे की बनावट, बोलचाल तथा आँख और मुख-मुद्रा से मालूम पड़ जाता हैं। – पंचतंत्र
  • पापी अंतःकरण की यन्त्रणा जीवित मनुष्य के लिए नरक हैं। – कालविन
  • कायरता पूछती हैं – क्या यह भयरहित है? औचित्य पूछता हैं – क्या यह व्यवहारिक हैं।? अहंकार पूछता हैं – क्या यह लोकप्रिय हैं? परन्तु अंतःकरण पूछता है – क्या यह न्यायोचित हैं? – पुश्किन
  • संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंतःकरण की प्रवृति ही प्रमाण होती हैं। – कालिदास
  • अंतःकरण साहस का मूल है। जो व्यक्ति वीर बनना चाहता है, वह अपने अंतःकरण के आदेशों का पालन करें। – जे० ऍफ़० क्लार्क
  • ईश्वर का मानव से कोमल संलाप ही अंतःकरण हैं। – यंग
  • वही मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सकता है, जिसका अंतःकरण निर्मल और पवित्र है। – स्वेट मार्डेन
  • एक ऐसा मनुष्य जो स्वस्थ है, कर्जे के मुक्त है और जिसकी अन्तरात्मा शुद्ध है उसकी ख़ुशी में और क्या जोड़ा जा सकता है। – एडम स्मिथ


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