मार्टिन लूथर किंग जूनियर

अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन में अमेरिकी पादरी, कार्यकर्ता और नेता

डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर (१५ जनवरी १९२९ - ४ अप्रैल १९६८) एक अमेरिकी बैपटिस्ट मिनिस्टर, डॉक्टर, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और १९६४ के नोबेल शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता थे। वह कोरेटा स्कॉट किंग के पति और योलान्डा किंग और मार्टिन लूथर किंग तृतीय के पिता थे।

Martin Luther King

उक्तियाँ सम्पादन

१९५० के दशक सम्पादन

किंग के कुछ प्रसिद्ध बयानों के लिए अक्सर कई स्रोत होते हैं; एक पेशेवर वक्ता और मिनिस्टर के रूप में उन्होंने अपने निबंधों, पुस्तकों, और विभिन्न श्रोताओं के लिए अपने भाषणों में कई बार केवल मामूली बदलाव के साथ कुछ महत्वपूर्ण वाक्यांशों का उपयोग किया।
  • आप जानते हो मेरे दोस्तों, एक समय ऐसा भी आता है जब लोग ज़ुल्म के लोहे के पैरों से रौंदे जाने से थक जाते हैं। एक समय आता है मेरे दोस्तों, जब लोग अपमान के रसातल में गिरते-गिरते थक जाते हैं, जहां वे निराशा की नीरसता का अनुभव करते हैं। एक समय ऐसा आता है जब लोग जीवन की जुलाई की तेज़ धूप से बाहर निकलने से थक जाते हैं और अल्पाइन नवंबर की चुभती ठंड के बीच खड़े रह जाते हैं। एक समय ऐसा आता है।
होल्ट स्ट्रीट बैपटिस्ट चर्च में मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण (५ दिसंबर १९५५)
  • हम, इस भूमि से वंचित, हम जो इतने लंबे समय से प्रताड़ित हैं, कैद की लंबी रात से गुज़रते हुए थक गए हैं। और अब हम स्वतंत्रता और न्याय और समानता के भोर की ओर बढ़ रहे हैं।
—होल्ट स्ट्रीट बैपटिस्ट चर्च में मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण (५ दिसंबर १९५५)
  • हम यहाँ हैं, हम आज शाम यहाँ हैं क्योंकि हम अब थक चुके हैं। और मैं कहना चाहता हूं कि हम यहां हिंसा की वकालत नहीं कर रहे हैं। हमने ऐसा कभी नहीं किया है। मैं चाहता हूं कि यह पूरे मोंटगोमरी और पूरे देश में ज्ञात हो कि हम ईसाई लोग हैं। हम ईसाई धर्म में विश्वास करते हैं। हम यीशु की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं। आज शाम हमारे हाथ में एकमात्र हथियार विरोध का हथियार है। बस इतना ही।
—होल्ट स्ट्रीट बैपटिस्ट चर्च में मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण (५ दिसंबर १९५५)
  • हमारे जीवन का उस दिन अन्त होना शुरू हो जाता है, जिस दिन हम उन मुद्दों के बारे में चुप हो जाते हैं, जो आम समाज के लिए मायने रखते हैं।
  • सही काम को करने के लिए, समय भी हर क्षण सही ही होता है।
  • अंधकार को अंधकार से नहीं, बल्कि प्रकाश से दूर किया जा सकता है। घृणा को ग्घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से खत्म किया जा सकता है।
  • मैंने प्रेम को ही अपनाने का निर्णय किया है, घृणा करना तो बहुत कष्टदायक काम है।
  • हमें सीमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन असीमित आशा को कभी नहीं भूलना चाहिए।