• श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ॥
यद्यदात्मनि चेच्छेत तत्परस्यापि चिन्तयेत् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ॥ (महाभारत, शान्तिपर्व)
धर्म का सार क्या है, यह सुनो और सुनकर उसे धारण भी करो! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।
और अपने लिए जिन-जिन बातों की इच्छा हो वे दूसरों को भी मिलें, ऐसा सोचना चाहिये। अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।
  • कानून के दृष्टि से कोई व्यक्ति तब दोषी माना जाता है जब वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करता है लेकिन धर्म की दृष्टि से जब कोई किसी दूसरे के अधिकारों के हनन के बारे में सोचता है तब भी वह दोषी है। -- इमानुएल काण्ट
  • अकेला व्यक्ति धरती का सबसे छोटा अल्पसंख्यक है। जो लोगों को व्यक्तिगत अधिकार दिये जाने के पक्ष में नहीं हैं वे अल्पसंख्यकों के रक्षक कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। -- Ayn Rand
  • किसी के पास भी यह अधिकार नहीं है कि उसको क्रोधित करने वाली बात नहीं कही जा सकती। ऐसा अधिकार मैने कभी भी किसी भी घोषणापत्र में नहीं पढ़ा है। -- सलमान रुशदी
  • देर-सवेर हमें समझना पड़ेगा कि धरती का भी यह अधिकार है कि वह प्रदूषण से मुक्त रहे। मानव समाज को समझना होगा कि वे धरती माँ के बिना नहीं रह सकते जबकि धरती बिना मानव के भी रह सकती है। -- Evo Morale
  • बोलने की स्वतन्त्रता का हनन करना दो बार गलती करने जैसा है। इससे बोलने वाले के अधिकारों का हनन तो होता ही है, इससे सुनने वाले के अधिकारों का भी हनन होता है। -- Frederick Douglass

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