क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।
किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे। किन्तु बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
अन्याय या गलत तरीके से कमाया हुआ धन दस वर्षों तक रहता है। लेकिन ग्यारहवें वर्ष वह मूलधन सहित नष्ट हो जाता है।
क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां देहस्थितो देहविनाशनाय।
यथा स्थितः काष्ठगतो हि वह्निः स एव वह्निर्दहते शरीरम्॥
क्रोध ही मनुष्यों का प्रथम शत्रु है जो (क्रोधी के) देह में स्थित रहते हुए उसी देह का नाश करने वाला है। जैसे लकड़ी में ही रहनेवाली अग्नि उसी लकड़ी के शरीर को जलाती है।
लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च।
लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति ॥
लोभ और पाप सभी संकटों का मूल कारण है। लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है।
हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो। घृणा से विनाश होता है। -- भगवान महावीर
दीर्घसूत्री विनश्यति ।
जो दीर्घसूत्री हैं (जो कार्य को आरम्भ करने में बहुर देर लगाते हैं), उनका विनाश होता है।