राजीव मल्होत्रा

भारतीय-अमेरिकी लेखक एवं वक्ता

राजीव मल्होत्रा ( जन्म : 15 सितंबर 1950) एक लेखक और विचारक हैं। वे 'इनफ़िनिटी फ़ाउंडेशन' नामक एक संस्था चलाते हैं।

राजीव मल्होत्रा ने सेंट स्टीफंस कॉलेज से भौतिकी की पढ़ाई की, फिर न्यूयॉर्क चले गए और वहां की सिरैक्यूज़ यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस पढ़े। इसके बाद राजीव मल्होत्रा ​​ने इन्फ़ॉरमेशन टेक्नॉलजी और मीडिया इंडस्ट्री में बतौर आंत्रप्रेन्योर काम शुरू किया। 1994 में ही उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया। तब वो सिर्फ़ 44 साल के थे। सेवानिवृत्ति के बाद, 1995 में न्यू जर्सी में उन्होंने इस संस्था की स्थापना की। उद्देश्य था प्राचीन भारतीय धर्मों की कथित ग़लत व्याख्या से लड़ना और विश्व सभ्यता में भारत के योगदान को दर्ज कराना।

इनफिनिटी फ़ाउंडेशन के नाम पर ही एक यूट्यूब चैनल भी है। राजीव यहां AI, हिंदू सभ्यता के साहित्य और छात्रों के साथ अपने इंटरैक्शन के वीडियो डालते हैं।

उक्तियाँ

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  • संयुक्त राज्य अमेरिका का 'फोर्ड फाउंडेशन' भारत विरोधी संस्थानों को लाखों डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान करता है क्योंकि कोई भी नहीं चाहता कि भारत प्रगति करे।
  • अमेरिका में शक्तिशाली ताकतों द्वारा भारत के खिलाफ एक गहन युद्ध चल रहा है।
  • भारत को विकसित होने से रोकने के लिए भारतीय सामाजिक संगठनों को लाखों डॉलर दिए जाते हैं।
  • यह कैसे संभव है कि एक ओर तो भारतीय समाज के अध्ययन हेतु हम विचारों का आयात करें तथा साथ ही विश्व गुरु होने के भरम में भी भरमाए रहें?
  • भारतीय गर्व से कहते हैं कि उनका राष्ट्र एवं उनकी विरासत विश्व गुरु हैं अर्थात् वे पूरे संसार के गुरु अथवा बौद्धिक मार्गदर्शक हैं। इस सुखद अनुभूति देने वाले विचार के समर्थन में वे योग की लोकप्रियता, भारतीय उद्यमियों एवं चिकित्सकों की वैश्विक सफलता और यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी की विश्व पटल पर प्रासंगिकता को भी गिनाते हैं। बहुत लोगों को लगता है कि भारत का युग प्रारम्भ हो गया है तथा वह सच्चे अर्थों में एक बार पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित हो गया है।
    परंतु आवश्यकता है धैर्य के साथ संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की। गुरु का अर्थ होता है ज्ञानदाता और विश्व गुरु अर्थात् वह जो पूरे विश्व को ज्ञान देता हो। अतः विश्व गुरु उसे कहना उचित होगा जिसके अर्जित ज्ञान को विश्व स्वीकारता एवं अपनाता हो, सम्भवतः जिस ज्ञान में कई वैश्विक समस्याओं का हल मिलता हो।
  • इस प्रकार से देखने पर हम पाते हैं कि मानविकी, समाज विज्ञान तथा लिबरल आर्ट्स विभागों में अति प्रभावशाली विचारधाराएं बनाने में हार्वर्ड जैसी पश्चिमी अकादमियां बड़ी भूमिका निभा रही हैं।
    वे विश्व को पढ़ा रही हैं कि भारत एवं उसकी हिन्दू सभ्यता के बारे में क्या और कैसे सोचना चाहिए। वे भारत के छोटे-से-छोटे पहलुओं का अध्ययन करती हैं। उनकी आकांक्षा है भारत-संबंधी आर्काइव्स तथा ‘बिग डाटा’ का विशालतम संग्रह एकत्रित करना तथा उसे बौद्धिक सम्पदा के रूप में उपयोग करना।
  • गुरु-शिष्य परंपरा की भांति ही हार्वर्ड के पूर्व छात्रों के नेटवर्क उसके सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार एवं बचाव का कार्य करते हैं तथा इन नेटवर्कों को अब प्रत्यक्ष रूप से ‘लिनिएज’ अर्थात् ‘वंशावली’ की संज्ञा दी जा रही है। भारतीय न केवल हार्वर्ड में शिक्षित होने का कोई भी अवसर मिलने पर खुशी में झूम उठते हैं अपितु खूब सारा पैसा खर्च करके उसकी ब्रेनवॉशिंग के लिए स्वयं को समर्पित करने को भी तत्पर रहते हैं।
  • विश्व-गुरु होने के बजाय भारतीय तो 'विश्व-शिष्य' बन चुके हैं। वे अपनी समालोचनात्मक चिन्तन क्षमता को दरकिनार कर चुके हैं और पश्चिमी अकादमियों द्वारा उगली गयी किसी भी बात को सत्य मान प्रसन्न हो रहे हैं।
  • यह पुस्तक द्रविड़-आन्दोलन तथा दलित पहचान की ऐतिहासिकता पर नज़र डालती है और साथ ही साथ उन ताक़तों को भी संज्ञान में लेती है जो देश में इन अलगाववादी पहचानों को बढ़ावा देने में कार्यरत हैं। इस किताब में ऐसे लोगों, संस्थाओं और उनके इस दिशा में कार्यरत होने के कारणों, क्रियाकलापों और उनके मूल ध्येय का भी समावेश है। ऐसी शक्तियां ज़्यादातर अमरीका और यूरोपीय देशों में हैं लेकिन इनकी संख्या भारत में भी बढ़ने लगी है – भारत में इनके संस्थान इन विदेशी शक्तियों के स्थानीय कार्यालय की तरह काम करते हैं। -- राजीव मल्होत्रा, 'ब्रेकिंग इंडिया' के बारे में
  • अधिकतर भारतीयों को यह पता ही नहीं है कि विनाशकारी ताक़तें देश तोड़ने में लगी हैं।
  • ९० के दशक की बात है, प्रिंसटन विश्वविद्यालय के एक अफ्रीकन-अमरीकन विद्वान ने बातों बातों में ज़िक्र किया कि वे भारत के दौरे से लौटे हैं जहाँ वे ‘एफ्रो-दलित’ प्रोजेक्ट पर काम करने गए थे। तब मुझे मालूम चला कि यह अमरीका द्वारा संचालित तथा वित्तीय सहायता-प्रदान प्रोजेक्ट भारत में अंतर्जातीय-वर्ण सम्बन्धों तथा दलित आंदोलन को अमरीकन नज़रिए से देखने का प्रकल्प है । एफ्रो-दलित पोजेक्ट दलितों को ‘काला’ तथा ग़ैर -दलितों को ‘गोरा’ जताता है। -- अपनी पुस्तक 'ब्रेकिंग इंडिया' की भूमिका में
  • मैं ‘आर्य’ लोगों के बारे में ये जानने के लिए भी अध्ययन कर रहा था कि वे कौन थे और क्या संस्कृत भाषा और वेद को कोई बाहरी आक्रान्ता ले कर आए थे या ये सब हमारी ही ईजाद और धरोहर हैं। इस सन्दर्भ में मैंने कई पुरातात्विक , भाषाई तथा इतिहास प्रेरित सम्मेलन और पुस्तक प्रोजेक्ट्स भी आयोजित किये ताकि इस मामले की पड़ताल में गहराई से जाया जा सके। इसके चलते मैं ने अंग्रेज़ों की उस ‘खोज’ की ओर भी ध्यान दिया जिसके हिसाब से उन्होंने द्रविड़-पहचान को ईजाद किया था- जो असल में १९ वीं शताब्दी के पहले कभी थी ही नहीं और केवल ‘आर्यन थ्योरी’ को मज़बूत जताने के लिए किसी तरह रच दी गयी थी। इस ‘द्रविड़-पहचान’ के सिद्धांत को प्रासंगिक रहने के लिए “विदेशी आर्य” के सिद्धांत का होना और उन विदेशियों के कुकृत्यों को सही मानना आवश्यक था। -- राजीव मल्होत्रा, 'ब्रेकिं इंडिया' की भूमिका में
  • अमरीका तथा यूरोपीय विश्वविद्यालयों में दक्षिण एशियाई अध्ययन में इस तरह के कार्यकर्ताओं (ऐक्टिविस्ट्स) को नियमित तौर पर आमंत्रित किया जाता है और उन्हें वहां प्रमुखता दी जाती है। ये वे ही संस्थान हैं जो खालिस्तानियों, कश्मीरी उग्रवादियों, माओवादियों तथा इस प्रकार के विध्वंसक तत्वों को आमंत्रित कर वैचारिक मदद तथा प्रोत्साहन देते रहे हैं।
    इसके चलते मुझे यह संदेह हुआ कि ये भारत के दलितों/द्रविड़ों तथा अल्पसंख्यकों की सहायता वाली बात कहीं कुछ पश्चिमी देशों की विदेश नीति का हिस्सा तो नहीं है – प्रत्यक्ष रूप से न सही पर परोक्ष रूप में सही  ! मुझे भारत के अलावा एक भी ऐसे देश की जानकारी नहीं है जहाँ (भारत की तरह) स्थानीय नियंत्रण/जांच के बिना इतने बड़े स्तर पर गतिविधियाँ बाहर से संचालित की जा रही हों
    तब मेरी समझ में आया कि भारत में अलगाववादी तकतों के निर्माण में इतना कुछ खर्च सिर्फ इसलिए किया जा रहा है ताकि यह अलगाववादी विचार अंततोगत्वा एक बेरोकटोक आतंकवाद में बदल जाए जिससे भारत का राजनीतिक विघटन संभव हो सके !
    इसके चलते मुझे यह संदेह हुआ कि ये भारत के दलितों/द्रविड़ों तथा अल्पसंख्यकों की सहायता वाली बात कहीं कुछ पश्चिमी देशों की विदेश नीति का हिस्सा तो नहीं है – प्रत्यक्ष रूप से न सही पर परोक्ष रूप में सही  ! मुझे भारत के अलावा एक भी ऐसे देश की जानकारी नहीं है जहाँ (भारत की तरह) स्थानीय नियंत्रण/जांच के बिना इतने बड़े स्तर पर गतिविधियाँ बाहर से संचालित की जा रही हों। -- राजीव मल्होत्रा, 'ब्रेकिं इंडिया' की भूमिका में
  • “धर्म” शब्द के अनेकों अर्थ हैं जो सन्दर्भों के आधार पर निर्भर होते हैं जिसमें उनका प्रयोग होता है I इनमें सम्मिलित हैं: आचरण, कर्तव्य, उचित, न्याय, धर्माचरण, नैतिकता, रिलिजन, धार्मिक गुण, उचित कार्य जो अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार निर्धारित होते हैं, इत्यादि I कई अन्य अर्थ भी सूचित किये गए हैं, जैसे कि, न्याय या “तोराह”(यहूदियों के सन्दर्भ में), “लोगोस” (ग्रीक के सन्दर्भ में), “वे” (ईसाई के सन्दर्भ में) और यहाँ तक कि “टाओ” (चीन के सन्दर्भ ) में I इनमें से कोई भी पूर्णतयः परिशुद्ध नहीं हैं और कोई भी पूर्ण दबाव के साथ संस्कृत में इस शब्द का अर्थ नहीं व्यक्त करने में सक्षम हैं I धर्म का कोई भी तुल्यार्थक शब्द नहीं है पश्चिमी कोष में I

राजीव मल्होत्र के बारे में अन्य लोगों के विचार

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  • विश्वस्त होने का एक अन्तिम कारण यह है कि राम स्वरूप, सीताराम गोयल, कोएनराद एल्स्त, डेविड फाउली और राजीव मल्होत्रा के कृतियों के कारण बना पाठसंग्रह अपने क्रिटिकल मास पर पहुँच गया है। अतः हम सोच सकते हैं कि कुछ वर्षों में भारत के लिये एक पुस्तकालय होगा और भारत का एक पुस्तकालय होगा। -- अरुण शौरी का 'इन्द्रास नेट पर लेख' (3 March 2014). Transcript: Arun Shourie's Lecture on 'Indra's Net'. Hitchhiker's Guide to Rajiv Malhotra's Works. Retrieved on 24 March 2014..
  • श्री राजीव मल्होत्रा जी भारतीय वैदिक हिन्दू धर्म की सार्वभौमिकता व वैज्ञानिकता को लेकर पूरी प्रामाणिकता के साथ वैश्विक पटल पर एक आदर्श कार्य कर रहे हैं। -- स्वामी रामदेव