राजा राम मोहन राय

भारतीय बंगाली धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक सुधारक (1772-1833)

राजा राम मोहन राय को 'भारतीय पुनर्जागरण का जनक' कहा जाता है। उन्हें भारत का प्रथम आधुनिक व्यक्ति (The first Modern man of India) भी कहा जाता है। इनका जन्म 1772 ई. में हुगली के राधानगर में हुआ था। वे अमेरिकी स्वाधीनता संग्राम एवं फ्रांसीसी आन्दोलन से काफी प्रभावित हुए। शिक्षा के क्षेत्र में वह अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे। उनहें विश्वास था कि उदारवादी पाक्ष्चात्य शिक्षा ही देशवासियों को अज्ञान के अंधकार से बाहर निकाल सकती है और भारतीयों को देश के प्रशासन में भाग दिला सकती है।

राजा राम मोहन राय

उक्तियां सम्पादन

  • ईश्वर केवल एक है, उसका कोई अंत नहीं सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है । मैं हिन्दू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त कुरीतियों का विरोधी हूँ । हिन्दी में अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता है । यह व्यापक विशाल विश्वब्रह्म का पवित्र मन्दिर है, शुद्ध शास्त्र है, श्रद्धा ही धर्म का मूल है, प्रेम ही परम साधन है, स्वार्थों का त्याग ही वैराग्य है ।
  • प्रत्येक स्त्री को पुरूषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है, हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए । हमारे समाज के लोग यह समझते हैं कि नदी में नहाने से, पीपल की पूजा करने से और पण्डित को दान करने से हमारे पाप धुल जाएँगे । जो ऐसा समझते हैं, वे भूल कर रहे है, उन्हें नदी में स्नान करने से कभी मुक्ति मिल सकती, वे अंधविश्वास के अँधेरे में भटक रहे हैं ।
  • यदि मानव जाति किसी के द्वारा थोपे गए विचारों पर ध्यान न दे और अपने तर्क से सत्य का अनुसरण करे, तो उसकी उन्नति को कोई रोक नहीं सकता, प्रत्येक भेदभाव को मिटा कर प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकता है । विचलित करने वाले अन्धविश्वासी हैं, धर्माध हैं, वे पूरे समाज में अन्धकार फैलाना चाहते हैं । समाचार- पत्रों को पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया जाए, जिससे कि वे ज्ञान के प्रकाश से सराबोर हो सके । किसी भी धर्म का ग्रन्थ पढने से जाति भ्रष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उठता। मैंने तो कई बार बाइबिल और कुरानेशरीफ को पढ़ा है, मै न तो ईसाई बना और न ही मुसलमान बना. बहुत से यूरोपियन गीता और रामायण पढ़ते हैं, वे तो हिंदू नहीं हुए ।
  • ईश्वर केवल एक है. उसका कोई अंत नहीं सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है।
  • मैं हिन्दू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त कुरीतियों का विरोधी हूँ।
  • हिन्दी में अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता है।
  • यह व्यापक विशाल विश्वब्रह्म का पवित्र मन्दिर है, शुद्ध शास्त्र है। श्रद्धा ही धर्म का मूल है, प्रेम ही परम साधन है। स्वार्थों का त्याग ही वैराग्य है।
  • प्रत्येक स्त्री को पुरूषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है। हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए।
  • हमारे समाज के लोग यह समझते हैं कि नदी में नहाने से, पीपल की पूजा करने से और पण्डित को दान करने से हमारे पाप धुल जाएँगे। जो ऐसा समझते हैं, वे भूल कर रहे हैं। उन्हें नदी में स्नान करने से कभी मुक्ति मिल सकती। वे अंधविश्वास के अँधेरे में भटक रहे हैं।
  • यदि मानव जाति किसी के द्वारा थोपे गए विचारों पर ध्यान न दे और अपने तर्क से सत्य का अनुसरण करे, तो उसकी उन्नति को कोई रोक नहीं सकता। प्रत्येक भेदभाव को मिटा कर प्रगति की राह पर अग्रसर हो सकता है।
  • विचलित करने वाले अन्धविश्वासी हैं, धर्माध हैं, वे पूरे समाज में अन्धकार फैलाना चाहते हैं।
  • समाचार- पत्रों को पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया जाए, जिससे कि वे ज्ञान के प्रकाश से सराबोर हो सके।
  • ज्ञान की ज्योति से मानव मन के अन्धकार को दूर किया जा सकता है।
  • किसी भी धर्म का ग्रन्थ पढने से जाति भ्रष्ट होने का प्रश्न ही नहीं उठता। मैंने तो कई बार बाइबिल और कुरानेशरीफ को पढ़ा है। मै न तो ईसाई बना और न ही मुसलमान बना। बहुत से यूरोपियन गीता और रामायण पढ़ते हैं, वे तो हिंदू नहीं हुए।

इन्हें भी देखें सम्पादन

बाहरी कड़ियां सम्पादन

 
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