मौनं स्वीकृति: लक्षणम्
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मौनं स्वीकृति: लक्षणम्(अर्थात् मौन रहना स्वीकार का लक्षण है किसी बात को स्वीकार करना।) उदाहरण-: जब एक लड़की के समक्ष उसके विवाह का प्रस्ताव रखा जाता है तो वह चुपचाप बिना कुछ बोले चली जाती है तो उसका मतलब स्वीकृति प्रदान की है' [:w:संस्कृत|संस्कृत]]) अर्थात् मौन सहमति का सूचक होता है। कहा गया है – अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप। ग्यारहवीं शताब्दी के आचार्य शुभचंद्र लिखते हैं -
धर्मनाशे क्रियाध्वंसे स्वसिद्धान्तार्थविप्लवे । अपृष्टैरपि वक्तव्यं तत्स्वरूपप्रकाशने ।। (ज्ञानार्णव/545)
अर्थात्
जब धर्म का नाश हो रहा हो, आगम सम्मत क्रिया नष्ट हो रही हो, आगम या सिद्धांत का गलत अर्थ लगाया जा रहा हो तब विद्वानों को बिना पूछे भी यथार्थ स्वरूप को बतलाने वाला व्याख्यान / कथन जरूर करना चाहिए।
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- रोशनी भी गर अंधरों से डरने लगेगी,तो बोलो ये दुनिया कैसे चलेगी?
- एक कवि ने लिखा है -
- 'जब चारों ओर मचा हो शोर सत्य के विरुद्ध, तब हमें बोलना ही चाहिए,
- सर कटाना पड़े या न पड़े, तैयारी तो उसकी होनी ही चाहिए।'
- रामधारी सिंह 'दिनकर' ने लिखा हैं -
- 'समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याध ।
- जो तटस्थ हैं ,समय लिखेगा उनके भी अपराध ।।'