माधव सदाशिव गोलवालकर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक तथा विचारक (1906-1973)

माधव सदाशिव गोलवलकर ( 19 फरवरी 1906 को रामटेक, महाराष्ट्र -- ५ जून १९७३) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक थे। इन्हें प्रायः 'गुरुजी' के नाम सम्बोधित किया जाता है।

उक्तियाँ

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  • मानव स्वयं पर अनुशासन के कठोरतम बंधन तब बड़े आनन्द से स्वीकार करता है, जब उसे यह अनुभूति होती है कि उसके द्वारा कोई महान कार्य होने जा रहा है।
  • मनुष्य के आत्मविश्वास में और अहंकार में अंतर करना कई बार कठिन होता है।
  • मानव के हृदय में यदि यह भाव आ जाय कि विश्व में सब-कुछ भगवत्स्वरूप है तो घृणा का भाव स्वयमेव ही लुप्त हो जाता है।
  • हमारी मुख्य समस्या है – जीवन के शुद्ध दृष्टिकोण का अभाव और इसी के कारण शेष समस्याएँ प्रयास करने पर भी नहीं सुलझ पातीं।
  • मनुष्य के लिए यह कदाचित अशोभनीय है कि वह मनुष्य-निर्मित संकटों से भयभीत रहे।
  • इस बात से कभी वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती कि हम वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त किये बिना अंधों की भांति इधर-उधर भटकते फिरें।
  • भारत-भूमि इतनी पावन है कि अखिल विश्व में दिखाई देनेवाला सत तत्व यहीं अनुभूत किया जाता है, अन्यत्र नहीं।
  • सच्ची शक्ति उसे कहते हैं जिसमें अच्छे गुण, शील, विनम्रता, पवित्रता, परोपकार की प्रेरणा तथा जन-जन के प्रति प्रेम भरा हो। मात्र शारीरिक शक्ति ही शक्ति नहीं कहलाती।
  • सेवाएँ अपने चारों ओर परिवेष्टित समाज के प्रति भी अर्पित करनी चाहिए।
  • सेवा करने का वास्तविक अर्थ है – हृदय की शुद्धि; अहंभावना का विनाश; सर्वत्र ईश्वरत्व की अनुभूति तथा शांति की प्राप्ति।
  • स्वतन्त्रता तो उसी को कहेंगे जिसके अस्तित्व में आने पर हम अपनी आत्मा का, राष्ट्रीय आत्मा का दर्शन करने में तथा स्वयं को व्यक्त करने में सामर्थ्यवान हों।

इन्हें भी देखें

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