महादेवी वर्मा, हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री हैं।

उद्धरण

सम्पादन
  • यथार्थ कभी-कभी कल्पना की सीमा नाप लेता है -- मेरा परिवार
  • मानुस गंध से सजातीयता का अनुभवकर -- मेरा परिवार
  • कवि कहेगा ही क्या, यदि उसकी इकाई सब की इकाई बनकर अनेकता नहीं पा सकी और श्रोता सुनेंगे ही क्या, यदि उन सबकी विभिन्नताएँ कवि में एक नहीं हो सकीं। -- स्मृति की रेखाएँ
  • तत्व सत्यमय, सत्य शिवमय और शिव सौन्दर्यमय होकर मुखर हो उठा -- पथ के साथी
  • आज असती मेनका से साखी शकुन्तला की उत्पत्ति सम्भव नहीं है, जिसे भरत-जैसे राजर्षि की जननी होने का सौभाग्य मिला था; आज वारांगना वसन्तसेना का अनन्य प्रेम स्वप्न है, जिसे पाकर कोई भी पत्नी अपने स्त्रीत्व को सफल समझ सकती थी। -- शृंखला की कड़ियाँ
  • काँटों का स्थान जब चरणों के नीचे रहता है तभी वे टूट कर दूसरों को बेधने की शक्ति खोते हैं । परीक्षाएँ जब मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य को क्षत-विक्षत कर डालती हैं तब उन्हें उतीर्ण होने-न-होने का कोई मूल्य नहीं रह जाता । -- पथ के साथी
  • तरल चकित आँखों -- मेरा परिवार
  • अपटु परिश्रम और साधनहीनता -- अतीत के चलचित्र
  • आँसू के खारे पानी में डुबाये बिना सौन्दर्य के चित्र-रंग पक्के नहीं हो सकते, पर प्रकृति के पास सौन्दर्य है, आँसू नहीं। -- पथ के साथी
  • मैंने सबसे पहले मृत्यु के द्वार से लौटे कुक्कुट-शावक के परिचय-चिह्नों को शब्दायित किया । -- मेरा परिवार
  • ठंडी जमीन, चादर, पुआल आदि पर जो सृष्टि सो रही थी, उसके बाह्य रूप और हृदय में इतना अन्तर क्यों है, यही मैं बार-बार सोच रही थी। उनके हृदय का संस्कार, उनकी स्वाभाविक शिष्टता, उनकी रस-विदग्धता, उनकी कर्मठता आदि का क्या इतना कम मूल्य है कि उन्हें जीवन-यापन की साधारण सुविधाएँ तक दुर्लभ हो -- स्मृति की रेखाएँ
  • मुझे तो उस लहर की-सी मृत्यु चाहिए जो तट पर दूर तक आकर चुपचाप समुद्र में लौट कर समुद्र बन जाती है -- पथ के साथी
  • जीवन-द्रष्टा साहित्यकार -- पथ के साथी
  • पागल लड़के की बुद्धिमती और परिश्रमी बहू को सास-ससुर चाह सकते हैं; पर देवर- जेठों के लिए तो वह एक समस्या ही हो सकती है, -- अतीत के चलचित्र
  • अपने दलों पर मोती सा जल भी न ठहरने देने वाली कमल की सीमातीत स्वच्छता ही उसे पंक में जमने की शक्ति देती है। -- अतीत के चलचित्र
  • मिट्टी की कुटी श्यामली -- पथ के साथी
  • युगों से पुरुष स्त्री को उसकी शक्ति के लिए नहीं, सहनशक्ति के लिए ही दण्ड देता आ रहा है। -- अतीत के चलचित्र
  • पाँच जल की धाराओं से घिरा और रंग-बिरंगे फूलों में छिपे चरणों से लेकर शून्य नीलिमा में प्रकट मस्तक तक सफेद हिम में समाधिस्थ केदार का पर्वत देखा वे ही उसका आकर्षण जान सकते हैं। मीलों दूर से ही वह उज्ज्वल शिखर अक्षरहीन आमंत्रण के समान खुला दिखाई देता है। -- स्मृति की रेखाएँ
  • अमरता है जीवन का हास मृत्यु जीवन का चरम विकास। -- नीलाम्बरा
  • बाँधती निर्बन्ध को मैं बन्दिनी -- यामा
  • संन्यास का अर्थ समझने के लिए जाकर मैंने उन्हें जिस उत्साह भरी स्थिति में पाया उसने मेरे प्रश्न को उत्तर बना दिया । टीले पर बनी अपनी उस कुटी का नक्षत्र नाम रखकर वे किसी नवीन सृजन की दिशा का अनुसन्धान करने में लगे हुए थे । -- पथ के साथी
  • सुख-दुख की बुदबुद्-सी लड़ियाँ बन बन उसमें मिट जातीं, बूंद बूंद होकर भरती वह भरकर छलक-छलक जातीं! -- नीलाम्बरा
  • शीतलपाटी, -- स्मृति की रेखाएँ
  • स्मृत्यावर्तन -- मेरा परिवार
  • पुरुष ने कुछ सौन्दर्य की प्रतिमाओं को पत्नीत्व तथा मातृत्व से निर्वासित कर दिया। वह स्वर्ग में अप्सरा बनी और पृथ्वी पर वारांगना। राजकार्य से ऊबे हुए भूपालों की सभाएँ उससे सुसज्जित हुईं, युद्ध में प्राण देने जाने वाले वीरों ने तलवारों की झनझनाहट सुनने के पहले उसके नूपुरों की रुनझुन सुनी, अति विश्राम से शिथिल लक्ष्मी के कृपा-पात्रों के प्राण उसकी स्वरलहरी के कम्पन से कम्पित हुए और कर्त्तव्य के दृढ़ बन्धन में बँधी गृहिणी उसके अक्षय व्यावसायिक स्त्रीत्व के आकर्षण से सशंकित हो उठी। -- शृंखला की कड़ियाँ
  • कितनी बीती पतझारें कितने मधु के दिन आये -- नीलाम्बरा
  • जलहरी में विराजमान महादेवजी, -- स्मृति की रेखाएँ
  • उन्हें कोई नया क्षितिज मिल गया -- पथ के साथी
  • पुरुष ने स्त्री के मातृ-रूप के सामने मस्तक झुकाया, उस पर हृदय की अतुल श्रद्धा चढ़ाई -- शृंखला की कड़ियाँ