मनोरोगविज्ञान (Psychiatry) आयुर्विज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है जिसमें मनोरोगों का अध्ययन, निदान, चिकित्सा और रोकथाम के उपाय किये जाते हैं। हिन्दी में इसे मनोविकारविज्ञान, मनोविकारचिकित्सा, मनोरोगचिकित्सा, मानसचिकित्सा आदि नामों से भी जाना जाता है।

उक्तियाँ

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  • असमर्थता भयकराणाम् -- (च.सू. 25.40) []
असमर्थता भयकारी होती है। ( और भय मानसिक रोगों का बीज है।)

रामचरितमानस के अनुसार मानस रोग

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  • मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥
सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत-से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है।
  • प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई॥
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना॥
यदि कहीं ये तीनों भाई (वात, पित्त और कफ) प्रीति कर लें (मिल जाएँ), तो दुःखदायक सन्निपात रोग उत्पन्न होता है कठिनता से प्राप्त (पूर्ण) होनेवाले जो विषयों के मनोरथ हैं, वे ही सब शूल (कष्टदायक रोग) हैं; उनके नाम कौनजानता है (अर्थात वे अपार हैं)।
  • ममता दादु कंडु इरषाई। हरष बिषाद गरह बहुताई॥
पर सुख देखि जरनि सोइ छई। कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई॥
ममता दाद है,  ईर्ष्या (डाह) खुजली है, हर्ष-विषाद गले के रोगों की अधिकता है (गलगंड, कंठमाला या घेघा आदि रोग हैं),  पराए सुख को देखकर जो जलन होती है, वही क्षयी है। दुष्टता और मन की कुटिलता ही कोढ़ है।
  • अहंकार अति दुखद डमरुआ। दंभ कपट मद मान नेहरुआ॥
तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी। त्रिबिधि ईषना तरुन तिजारी॥
अहंकार अत्यंत दुःख देनेवाला डमरू (गाँठ का) रोग है। दंभ, कपट, मद और मान नहरुआ (नसों का) रोग है।  तृष्णा बड़ा भारी उदर वृद्धि (जलोदर) रोग है। तीन प्रकार (पुत्र, धन और मान) की प्रबल इच्छाएँ प्रबल तिजारी हैं।
  • जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लगि कहौं कुरोग अनेका॥
मत्सर और अविवेक दो प्रकार के ज्वर हैं। इस प्रकार अनेकों बुरे रोग हैं, जिन्हें कहाँ तक कहूँ।
  •  एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥
एक ही रोग के वश होकर मनुष्य मर जाते हैं, फिर ये तो बहुत-से असाध्य रोग हैं। ये जीव को निरंतर कष्ट देते रहतेहैं, ऐसी दशा में वह समाधि (शांति) को कैसे प्राप्त करे

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

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