वीराः संभावितात्मानो न दैवं पर्युपासते॥ -- वाल्मीकिरामायणम् , अयोध्याकाण्ड
बलहीन या कापुरुष ही भाग्य के भरोसे बैठा रहता है। स्वावलम्बी पुरुष कर्म के माध्यम से सब कुछ प्राप्त कर लेता है, वह केवल भाग्य के भरोसे नहीं बैठा रहता है।
कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥ -- रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड
(लक्ष्मणजी ने कहा-) यह दैव (भाग्य) तो कायर के मन का एक आधार (तसल्ली देने का उपाय) है। आलसी लोग ही दैव-दैव पुकारा करते हैं॥
लक्ष्मी कर्म करने वाले पुरुषरूपी सिंह के पास आती है, "देवता (भाग्य) देने वाला हैं" ऐसा तो कायर पुरुष कहते हैं। इसलिए देव (भाग्य) को छोड़ कर अपनी शक्ति से पौरुष (कर्म) करो, प्रयत्न करने पर भी यदि कार्य सिद्ध नहीं होता है तो देखो क्या समस्या है (कोई और समस्या तो नहीं?)।
मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं ही निर्माता है। -- स्वामी रामतीर्थ
भाग्य पर वह भरोसा करता है, जिसमें पौरुष नहीं होता। -- प्रेमचंद
विचार सारे भाग्य का प्रारंभिक बिंदु है। -- नेपोलियन हिल
भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है, और साहसपूर्वक खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है।
ईश्वर या प्रारब्ध या भाग्य को कोसने से कोई लाभ नहीं क्योंकि अपने को अपमान और लांछना की स्थिति में ला पटकने की सारी जिम्मेदारी हमारी है। -- सुभाषित
मृत अतीत को दफना दो, अनंत भविष्य तुम्हारे सामने है और स्मरण रखो कि प्रत्येक शब्द, विचार और कर्म तुम्हारे भाग्य का निर्माण करता है। -- विवेकानन्द
जो कुछ भी होता है, वह अच्छे के लिए होता है। ईश्वर के पास हमेशा एक बेहतर योजना होती है। -- अज्ञात
अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है॥ -- रामधारी सिंह 'दिनकर'
अपने पुरुषार्थ से अर्जित ऐश्वर्य का ही दूसरा नाम सौभाग्य है। -- अज्ञात
भाग्य साहसी मनुष्य की सहायता करता है। -- वर्जिल
प्रत्येक व्यक्ति का भाग्य एक बार अवश्य उदय होता है। यह बात अलग है कि वह उसका कितना लाभ उठाता है। -- भृगु
भाग्यचक्र लगातार घूमा करता है, कौन कह सकता है कि आज मैं उच्च शिखर पर पहुँच जाऊंगा। -- कन्फ्यूशस
सौभाग्य दरवाजा खटखटाता है और पूछता है - "क्या समझदारी घर में मौजूद है ?"