हे राजन्! जिस प्रकार एक बीज से दूसरा बीज उत्पन्न होता है, उसी प्रकार एक शरीर (पिता के शरीर) द्वारा अन्य (माता के) शरीर के माध्यम से एक तीसरा (पुत्र का) शरीर उत्पन्न होता है। जैसे भौतिक शरीर के तत्त्व नित्य हैं, वैसे ही इन भौतिक तत्त्वों से प्रकट होने वाली जीवात्मा भी नित्य है।
वनस्पतेरपक्वानि फलानि प्रचिनोति यः।
स नाप्नोति रसं तेभ्यो बीजं चास्य विनश्यति॥
यस्तु पक्वमुपादत्ते काले परिणतं फलम्।
फलाद्रसं स लभते बीजाच्चैव फलं पुनः॥ -- विदुरनीति
जो वृक्ष के कच्चे फलों को चुन लेता हैं, वह उनसे रस नहीं ले सकता और उनका बीज भी नष्ट हो जाता हैं, किन्तु जो मनुष्य समय पर तैयार हुए पक्के फल को लेता हैं, वह फल से रस भी लेता हैं और समय पर वापस बीज से फल भी प्राप्त करता हैं।
जिस प्रकार अच्छी वर्षा होने पर बीज से ही दूसरा बीज उत्पन्न हो जाता है, उसी परकार उत्तर से ही उत्तर-वाक्य (बाद में जो कहना है) वक्ताओं के मन में उत्पन्न हो जाता है।
ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यन्त लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान् की कथा, इनका वैसा ही फल होता है जैसा ऊसर में बीज बोने से होता है (अर्थात् ऊसर में बीज बोने की भाँति यह सब व्यर्थ जाता है)।
‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥
गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही इसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसे शुभ फल मिलेंगे और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा।
जैसा बोवोगे, वैसा काटोगे। -- बाइबल
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय।
मेरे लिए उपलब्धि सक्रियता में है, जितने सर्वश्रेषठ ढंग से मैं बीज बो सकता हूँ। उतने बेहतर ढंग से मैं उन्हें बोता हूँ और उसके बाद सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देता हूँ। -- डी प्रताप सिंह रेड्डी