बाबा आमटे

भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता

बाबा आमटे (1914 - 2008) भारत के एक समाजसेवी एवं समाजसुधारक हैं। उनका पूरा नाम मुरलीधर देविदास आमटे है। एक सामजिक कार्यकर्ता के रूप में बाबा आमटे ने कुष्ट रोग पीड़ितों की सेवा की।

बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिन्घनघाट शहर में हुआ था। उन्हें डेमियन डट्टन पुरस्कार, रेमन मैगसेसे पुरस्कार, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मान, टेम्पलटन पुरस्कार, राइट लाइवलीहुड पुरस्कार, पद्म श्री, पद्म विभूषण, गाँधी शांति पुरस्कार और अनेक पुरष्कार प्रदान किये गये। 9 फरवरी 2008 को 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

सुविचार सम्पादन

  • भविष्य साधारण लोगो के असाधारण दृढ संकल्प से सम्बन्धित है।
  • मै एक महान नेता नही बनना चाहता हु मै एक आदमी बनना चाहता हु जो की थोड़े से मिलने पर भी संतुष्ट हो और लोगो के टूटने पर लोगो की सहायता करे, जो मनुष्य ऐसा करता है निश्चित ही वह भगवा रंग के वस्त्रो में किसी पवित्र व्यक्ति से भी बड़ा है यही मेरे जीवन का आदर्श है।
  • ख़ुशी आपके अनुभवो का एक तुलनात्मक रूप है जब आप उसकी तुलना उन पालो से करते है जो आपके लिए अच्छी नही रही है और इस तरह आप खुश होते है और इसका आभारी व्यक्त करते है यही ख़ुशी के पल है।
  • महान नेता बनने से कही अच्छा है जरुरतमन्दो की सहायता करना, जो मै करना चाहता हूँ।
  • मैंने कुष्ट रोग को खत्म करने के लिए किसी की मदद नही की बल्कि लोगो के बीच में इस रोग से पैदा हुए डर को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया।
  • खुशियों का अंत हो जाता है जब इसे लोगो के बीच में साझा नही किया जाय।
  • खुशी एक सतत रचनात्मक गतिविधि है।
  • आनन्द कुष्ट रोग से कही अधिक संक्रामक है जो बहुत तेजी से फैलता है।
  • यदि आप सपने में जी रहे है तो यह आपके प्रगति के रुकावट का कारण बनता है।
  • एक कुशल कप्तान कभी भी डूबते हुए जहाज का साथ नही छोड़ता है ऐसे देश को भी डूबने से बचाने के लिए बहादुर नाविकों को उभरने चाहिए।
  • आप कभी भी गुफा में मृत शेर नही देखते है न ही घोसलों में मृत पक्षी को देखते है तो आप मुझसे क्या चाहते है मै वही मिलता हु जहा जिंदादिल लोग रहते है।
  • जीवन जीने के लिए हमेसा कुछ नया सीखते रहना चाहिए।
  • कार्य महान बनाता है जबकि दान पाने से लोग अकर्मण्य हो जाते है इसलिए लोगो को दान नही कुछ करने का मौका दीजिये।
  • सबसे पहले आपको अपने दिल में भाला लेना है यानी खुद को इतना कठोर बनाना है की कठिनाईयों का डटकर सामना करे तभी आपके सिर पर सफलता का मुकुट पहन सकते है।
  • कोई भी बिना एक ऊँगली के रह सकता है लेकिन बिना आत्मसम्मान के जीना व्यर्थ है।