बहाउल्लाह

बहाई धर्म के संस्थापक

महात्मा बहाउल्लाह ((12 नवम्बर 1817 – 29 मई 1892) बहाई धर्म के संस्थापक थे। वे शील और सौम्यता की मूर्ति थे। बहाई धर्म को माननेवाले उनको ईश्वर का अवतार मानते हैं। दिल्ली स्थित कमल मंदिर बहाइयों के दुनिया भर में स्थित सात मंदिरों में से एक है।

उक्तियाँ सम्पादन

  • प्रभु ! यह वर दे कि एकता की ज्योति सारी पृथ्वी को आप्लावित कर ले औए “साम्राज्य प्रभु का है।” यह भाव समस्त जनमानस और राष्ट्रों के ललाट पर अंकित हो जाये।
  • जो अपने देश को प्यार करता है, उसके लिए यह उतने गौरव की बात नहीं है, जितने गौरव की बात उसके लिए है जो सम्पूर्ण विश्व को प्यार करता है। सम्पूर्ण पृथ्वी एक देश और समस्त मानव जाती इसके नागरिक।
  • एक शुद्ध, उदार एवं प्रफुल्लित हृदय धारण कर ताकि तू शाश्वत अमित एवं अनंत श्रेष्ठता का भागी बने।
  • मेरी दृष्टि में सर्वाधिक प्रिय वस्तु है – न्याय। तुझे यदि मेरी अभिलाषा है तो उससे विमुख न हो और उसकी अवहेलना न कर, ताकि तू मेरा विशवास पात्र बन सके।
  • मुझसे वह न मांग जिसे हम तेरे लिए नहीं चाहते हैं, तेरे हित हमने जो उपलब्ध कराया है उस पर संतोष रख क्योंकि यदि तूने उससे स्वयं को संतुष्ट कर लिया तो एकमात्र वही तुझे लाभकर होगा।
  • मैंने तुझे शस्यवान पैदा किया है परन्तु तूने स्वयं को गिरा दिया है। उठ, उसी श्रेष्ठता को प्राप्त कर, जिसके लिए तू पैदा किया गया है।
  • नरों में सबसे नीचे वे नर हैं, जो धरती पर कोई भी सुफल नहीं उपजाते हैं, निश्चय ही ऐसे नर मृतकों में गिने जाते हैं।
  • नरों में सर्वोत्तम वे नर हैं, जो उद्दम द्वारा जीवितपार्जन करते हैं और समस्त ब्रह्मांडों के स्वामी, उस प्रभु के प्रेम के लिए अपने तथा अपने बन्धु-बांधवों पर न्योछावर कर देते हैं।
  • तुम्हारे बीच जो निर्धन हैं, वे मेरी धरोहर हैं। मेरी धरोहर की तुम रक्षा करो और अपने ही सुख चैन में लिप्त न रहो।
  • समस्त लालसाओं को निकाल फेंको और आत्मतुष्टि की कामना करो क्योंकि लालसा ग्रसित नर सदैव विहीनता का नागी है और आत्म-सन्तोषी सदैव व प्यार और प्रशंसा का भागी बना है ।
  • सम्पूर्ण पृथ्वी एक देश है और समस्त मानवजाति उसकी नागरिक है।
  • वह धन्य है जो खुद से पहले अपने भाई के बारे में सोचता है।
  • आप एक पेड़ के फल और एक शाखा के पत्ते हैं।