बलराज मधोक
भारतीय राजनीतिज्ञ
बलराज मधोक (25 फ़रवरी 1920 - 2 मई 2016) जम्मू के एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे।
उद्धरण
सम्पादन- मुसलमानों को भारत की मुख्यधारा में लाने की ज़रूरत है। उसके लिए दो कदम जरूरी हैं। पहला कदम ये है कि उनके दिमाग से निकालो कि मुसलमान बनने के कारण तुम्हारी संस्कृति बदल गई। संस्कृति तुम्हारी वही है जो भारत की है। भाषा तुम्हारी वही है जो तुम्हारे माँ बाप की थी। उर्दू, हिंदी की एक शैली है। मैं भी उसे पसंद करता हूँ, क्योंकि मेरी शिक्षा भी उर्दू मे हुई है, लेकिन उर्दू मेरी भाषा नहीं है। मेरी भाषा पंजाबी है।
- दूसरी बात उन्हें ये बताओ कि देश माँ की तरह है। सारे जापानी बौद्ध हैं। वो भारत आते हैं। उसे पुण्यभूमि मानते हैं लेकिन वो जापान से प्यार करते हैं। हिंदुस्तान में इस्लाम के मजहब को पूजा विधि के रूप में कोई खतरा नहीं है लेकिन यहाँ ये नहीं चल सकता कि जो मोहम्मद को माने वो भाई हैं और बाकी काफिर हैं।
- दुर्भाग्य ये हुआ कि उस समय हमने विभाजन तो स्वीकार कर लिया लेकिन उससे निकलने वाले परिणामों को अनदेखा कर दिया। विभाजन ने दो बातें साफ कर दीं। ये जो 'साझा संस्कृति' को जो बात थी वो खत्म हो गई। हर मुल्क की साझा संस्कृति होती है लेकिन कोई इसे साझा नहीं कहता। -- बलराज मधोक, भारत के विभाजन पर
- दुनिया में आज सबसे अधिक साझा संस्कृति अमरीका की है लेकिन वो भी उसे साझा नहीं कहते। वो इसे अमरीकन 'कल्चर' कहते हैं। गंगा के अंदर अनेक नदियाँ मिलती हैं, लेकिन मिलने के बाद गंगा जल हो जाता है। ये गंगा-जमुनी की बात गलत है। जब जमुना गंगा मे मिल जाती है तो कोई गंगा के पानी को गंगा-जमुनी पानी नहीं कहता। वह गंगाजल कहलाता है।
- दबाव या अन्य कारणों से पूजा पद्धति में परिवर्तन से उनके पूर्वजों या उनकी संस्कृति में कोई बदलाव नहीं आया है। संस्कृति देश से जुड़ी होती है, धर्म से नहीं। -- बलराज मधोक : भारतीयकरण, कोएनराड एल्स्ट द्वारा लिखित 'डिकोलोनाइजिंग द हिंदू माइंड' (2001) में उद्धृत किया गया
- इस आधार पर कि मुसलमानों को उनसे एलर्जी हो गई है, इसलिए वे पार्टी में शामिल नहीं होंगे। -- बलराज मधोक के अनुसार, 1973 में बलराज मधोक को पार्टी छोड़ने के लिए कहते समय भारतीय जनसंघ नेतृत्व द्वारा दिया गया कारण ;बलराज मधोक : "सत्ता का प्रश्न", इंडियन एक्सप्रेस, 29 अक्टूबर 1995. एल्स्ट, के. भाजपा बनाम हिंदू पुनरुत्थान (1997) से उद्धृत
मधोक के बारे में उद्धरण
सम्पादन- 1960 के दशक में भारतीय जनसंघ के सबसे सशक्त नेता निस्संदेह बलराज मधोक (1921) थे, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाते थे। -- कोएनराड एल्स्ट द्वारा लिखित 'डिकोलोनाइजिंग द हिंदू माइंड' (2001)
- मधोक एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट-विरोधी थे और इस कारण उनका टकराव वामपंथी विचारधारा वाले नेताओं से हुआ, जो उन राज्यों में वामपंथी दलों के साथ “सिद्धांतहीन” गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे थे, जहां इससे गैर-कांग्रेसी बहुमत और “विपक्षी सरकार” (जैसा कि उस समय गैर-कांग्रेसी सरकारों को कहा जाता था) सुनिश्चित हो सकती थी। -- कोएनराड एल्स्ट द्वारा लिखित 'डिकोलोनाइजिंग द हिंदू माइंड' (2001)
- इसी कारण से, तत्कालीन जनसंघ नेता बलराज मधोक ने महात्मा को झूठे मसीहा के रूप में निंदा करने की अपनी पुरानी नीति पर कायम रहते हुए, उसी समय राजनीतिक और नैतिक आधार पर हत्या की निंदा की। उन्होंने लिखा कि यह हत्या 'एक बहुत ही अ-हिंदू कृत्य' था, जिसने महात्मा को 'इतिहास के कूड़ेदान' से बचाया, जिसके लिए वे पाकिस्तान के निर्माण के बाद जा रहे थे, और इसने गांधी के अंतर-सांप्रदायिक एकता के हिंदू दृष्टिकोण पर इस्लामी अलगाववाद की जीत का ताज पहनाया। -- मधोक, बी. एल्स्ट, कोएनराड (2018) से उद्धृत। मैंने महात्मा को क्यों मारा: गोडसे के बचाव को उजागर करना। नई दिल्ली: रूपा, 201