जिस तरह दावाग्नि के अतिरिक्त अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहीं, जिस तरह दावाग्नि के शमन में बादलों के सिवा अन्य कोई समर्थ नहीं, और निष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों को हटाने शक्तिमान नहीं, वैसे तप के अलावा और कोई, कर्मप्रवाह को नष्ट करने में समर्थ नहीं।
गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा ।
कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ॥ -- गोस्वामी तुलसीदास
हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है, और वही धूल नीच (नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है।
कूजहिं खग-मृग नाना वृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनन्दा॥