• कार्येषु मन्त्री करणेषु दासी भोज्येषु माता शयनेषु रम्भा।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा॥
कार्य के सन्दर्भ में मंत्री, गृहकार्य में दासी, भोजन प्रदान करने वाली माँ, रति के संदर्भ में रम्भा, धर्म का पालन करने वाली, क्षमा करने में धरती के समान - इन छह गुणों वाली पत्नी मिलना दुर्लभ है।
  • अनुकूलां विमलाङ्गीं कुलीनां कुशलां सुशीलां सम्पन्नाम्।
पञ्चलकारां भार्यां पुरुषः पुण्योदयात् लभते॥
अनुकूल (अपने विचारों से मेल खाने वली), विमलांगी (स्वच्छ अंगों वाली), कुलीन, कुशल, सुशील - पांच 'ल'कारों से सम्पन्न ऐसी पत्नी तभी मिलती है जब पुरुष पुण्य (का फल) प्राप्त करता है।
  • राजपत्नी गुरोः पत्नी भ्रातृपत्नी तथैव च।
पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैते मातरः स्मृतः॥
राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, भाई की पत्नी, पत्नी की माता (सास) और अपनी माता - ये पाँचों माता हैं।

इन्हें भी देखें

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