• रोगमादौ परीक्षेत ततोनन्तरं औषधम् ।
ततः कर्म भिषक् पश्चात् ज्ञानपूर्वं समाचरेत् ॥
यस्तुरोगं अविज्ञाय कर्मान्यरभते भिषक।
अपि औषधविधानज्ञः तस्य सिद्धि यद्रच्छया ॥
यस्तु रोगविशेषज्ञः सर्वभैषज्यकोविदः।
देशकालप्रमाणज्ञः तस्य सिद्धिरसंशयम् ॥ -- चरकसंहिता, सूत्रस्थान, २०/२०,२१,२२
अर्थात् चिकित्सा के पूर्व परीक्षा अत्यन्त आवश्यक है। परीक्षा की जहां तक बात आती है तो परीक्षा रोगी की भी होती है और रोग की भी। रोग-रोगी दोनों की परीक्षा करके उनका बलाबल ज्ञान करके ही सफल चिकित्सा की जा सकती है।
  • निदानं पूर्वरूपाणि रूपाण्युपशयस्तथा।
सम्प्राप्तिश्चेति विज्ञानं रोगाणां पञ्चधा स्मृतम् ॥ -- वाग्भट विरचित अष्टाङ्गहृदयसंहिता के 'निदानस्थान' नामक प्रथम अध्याय में
निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय और सम्प्राति - ये रोगों के पाँच प्रकार के विज्ञान हैं।
  • आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
  • उपलब्ध युक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने आत्म-निदान किया और समय से पहले मरने से बच गया। -- Steven Magee, Magee’s Disease
  • सही निदान मुझे पुस्तकों में और इन्टरनेट पर मिला। ― Steven Magee, Hypoxia, Mental Illness & Chronic Fatigue

इन्हें भी देखें

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