राजनीति गांधी के युग से ही सामाजिक आंदोलन का हिस्सा रही है। उस समय राजनीति का इस्तेमाल देश के विकास के लिए होता था। आज की राजनीति के स्तर को देखें तो चिंता होती है।
मुझसे एक पत्रकार ने पूछा कि आप मजे में कैसे रह लेते हैं। मैंने कहा कि मैं भविष्य की चिंता नहीं करता, जो भविष्य की चिंता नहीं करता वह खुश रहता है।
हम सबके लिए सड़क सुरक्षा का एजेंडा सबसे ऊपर है।
विभिन्न अभियानों एवं विज्ञापनों के जरिये सरकार सड़कों पर लोगों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
हमें समझना होगा कि राजनीति का क्या मतलब है। क्या यह समाज, देश के कल्याण के लिए है या सरकार में रहने के लिए है?
कभी-कभी मन करता है कि राजनीति ही छोड़ दूं। समाज में और भी काम हैं, जो बिना राजनीति के किए जा सकते हैं।
समस्या सबके साथ है। हर कोई दुखी है। MLA इसलिए दुखी हैं कि वे मंत्री नहीं बने। मंत्री बन गए तो इसलिए दुखी हैं कि अच्छा विभाग नहीं मिला और जिन मंत्रियों को अच्छा विभाग मिल गया, वे इसलिए दुखी हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। मुख्यमंत्री इसलिए दुखी हैं कि पता नहीं कब तक पद पर रहेंगे।
देश में रसद की उच्च लागत में कटौती करने के लिए, अंतर्देशीय जलमार्गों को बड़े पैमाने पर विकसित किया जा रहा है, जबकि मेथनॉल को जल्द ही जहाजों के लिए ईंधन बनाया जाएगा।
बापू के समय में राजनीति देश, समाज, विकास के लिए होती थी, लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है।
महात्मा गांधी के समय की राजनीति और आज की राजनीति में बहुत बदलाव हुआ है।
समय बहुत महत्वपूर्ण है और सरकार विकास कार्यों को लेकर समय पर निर्णय नहीं ले रही है, यह बड़ी समस्या है।
सरकार समय पर निर्णय नहीं लेती है यही बड़ी समस्या है।
सरकार सड़क सुरक्षा का ऑडिट शुरू करने की योजना बना रही है ताकि, सड़कों की गुणवत्ता को सुधारा जा सके और दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके।
हमने तय किया है कि उन्हें कॉरपोरेट निकाय बनाने के बजाय, हम मौजूदा कानूनों को बदल देंगे, और देखेंगे कि दक्षता में सुधार के लिए हम अन्य क्षेत्रों में और क्या कर सकते हैं।
अगर किसी व्यक्ति के पास साइकिल है तो वह मोटरसाइकिल चाहेगा,फिर जब वह मोटरसाइकिल खरीद लेता है तो अगला लक्ष्य कार होती है।इसलिए किसी को कभी यह महसूस नहीं होता कि अच्छे दिन आ गये।
हमने केवल अच्छे दिन’ शब्दों का प्रयोग किया और इसे शाब्दिक अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए। इसका मतलब यह होना चाहिए कि प्रगति हो रही है।
विचारों में मतभेद समझ में आता हैं, लेकिन नेताओं की शून्य विचारधार एक बड़ी समस्या हैं जिसका सामना आज भारतीय लोकतंत्र कर रहा हैं।
जब हमने बंदरगाहों के निगमीकरण को लागू करने की कोशिश की, तो ट्रेड यूनियनों ने आपत्ति जताई। कुछ राजनीतिक दलों ने इसका फायदा उठाने की कोशिश की, राष्ट्रीय हित और विकास की अवहेलना करते हुए, हमने तय किया है कि उन्हें कॉर्पोरेट निकाय बनाने के बजाय, हम मौजूदा कानूनों को बदल देंगे, और देखेंगे कि दक्षता में सुधार के लिए हम अन्य क्षेत्रों में और क्या कर सकते हैं।
सड़क आभियांत्रिकी, वाहन विनिर्माण और आपातकालीन सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को सफल बनाने के लिए सभी हितधारकों के सहयोग की जरूरत है।
मजबूरियों और सुविधा की राजनीति के कारण नेताओं का दल बदलना भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं हैं।
राजनीति मजबूरियों, विरोधाभासों, सीमाओं का खेल हैं, और कुछ लोग आ जा रहे हैं।
मेरा मानना है कि राजनीति सामाजिक-आर्थिक सुधार का एक सच्चा साधन है। इसलिए नेताओं को समाज में शिक्षा, कला आदि के विकास के लिए काम करना चाहिए।