नागार्जुन

बौद्ध दार्शनिक (150-250 ईसवी)

नागार्जुन (150 ई० – 250 ई०) भारत के एक बौद्ध भिक्षु एवं दार्शनिक थे। तिब्बती और पूर्वी एशियाई महायान परम्परा में उन्हें 'द्वितीय बुद्ध' कहा जाता है। शून्यत्ववाद को केन्द्र में रखकर उन्होंने महायान बौद्ध दर्शन को युक्तियुक्त बनाया।

उक्तियाँ

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मूलमध्यमकारिका

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  • अस्तीति शाश्वतग्राहो नास्तीत्युच्छेददर्शनम्।
तस्मादस्तित्वनास्तित्वे नाश्रीयेत विचक्षणः॥१५-१०॥
किसी वस्तु का अस्तित्व स्वीकार करने का अर्थ है कि वह सदा ग्राह्य है। किसी वस्तु का अस्तित्व नकारने का अर्थ है उसके उच्छेद को देखना है।
इसलिये बुद्धिमान मनुष्य को अस्तित्व या नास्तित्व पर आश्रित नहीं रहना चाहिये।
  • न निर्वाणसमारोपो न संसारापकर्षणम्।
यत्र कस्तत्र संसारो निर्वाणं किं विकल्प्यते॥ १६-१॥
जहाँ न निर्वाण का समारोप है और न ही संसार का अपकर्षण है, वहाँ कौन से संसार का किस निर्वाण से अन्तर किया जायेगा?
  • तथागतो यत्स्वभावस्तत्स्वभावमिदं जगत्।
तथागतो निःस्वभावो निःस्वभावम् इदं जगत्॥२२-१६॥
तथागत (बुद्ध) का जो स्वभाव है वही स्वभाव जगत् का है। तथागत निःस्वभाव हैं ; यह जगत भी निःस्वभाव है।
  • न संसारस्य निर्वाणात् किं चिद् अस्ति विशेषणं
न निर्वाणस्य संसारात् किं चिद् अस्ति विशेषणं॥२५-१९॥
इस संसार में कोई ऐसी विशेषता नहीं है जो इसे निर्वाण से अलग करे। (और) निर्वाण में ऐसी कोई विशेषता नहीं है जो उसे संसार से अलग करे।
  • निर्वाणस्य च या कोटिः कोटिः संसरणस्य च।
न तयोरन्तरं किंचित्सुमूक्ष्ममपि विद्यते॥२५-२०॥
निर्वाण की कोटि (सीमा या परिमाण) है और संसार की कोटि में कोई सुसूक्ष्म भी अन्तर नहीं है।

रत्नावली

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सुहृल्लेख

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प्रज्ञादण्ड

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नागार्जुन के बारे में कथन

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