देशकाल का अर्थ है - देश और काल। इस शब्द से इस बात का महत्व दिया जाता है कि मनुष्य को कोई भी काम करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह कहाँ है और समय कैसा है।

उक्तियाँ सम्पादन

  • देशकालौ तु सम्प्रेक्ष्य बलाबलमथात्मनः ।
नादेशकाले किं चित् स्याद् देशकालौ प्रतीक्षताम् ।
तथा लोकभयाच्चैव क्षन्तव्यमपराधिनः ॥ -- महाभारत, वनपर्व
देश, काल तथा अपने बलाबलका विचार करके ही मृदुता (सामनीति)-का प्रयोग करना चाहिये। अयोग्य देश अथवा अनुपयुक्त कालमें उसके प्रयोगसे कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकता; अतः उपयुक्त देश, कालकी प्रतीक्षा करनी चाहिये। कहीं लोकके भयसे भी अपराधीको क्षमादान देनेकी आवश्यकता होती है।
  • दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्॥ -- भगवद्गीता
"दान देना ही कर्तव्य है" - इस भाव से जो दान योग्य देश, काल को देखकर ऐसे (योग्य) पात्र (व्यक्ति) को दिया जाता है, जिससे प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं होती है, वह दान सात्त्विक माना गया है।।
  • कार्यं चावेक्ष्य शक्तिं च देशकालो च तत्त्वतः।
कुरुते धर्म सिद्ध्यर्थं विश्वरूपं पुनः पुनः॥ -- महासुभाषितसंग्रह (९७२८)
हमे सदैव अपने सभी विभिन्न कार्यों को अपनी शक्ति, सामर्थ्य, देशकाल की परिस्थितियों के अनुसार तथा धर्म का पालन करते हुए ही निष्ठापूर्वक करना चाहिये।
  • इन्द्रियाणि च संयम्य बकवत्पण्डितो नरः।
देशकालः बलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्॥ -- चाणक्य
बगुले के समान इंद्रियों को वश में करके देश, काल एवं बल को जानकर विद्वान अपना कार्य सफल करें ।
  • किञ्चित्पङ्के तथा यायाद् बहुनागो नराधिपः ।
रथाश्वबहुलो यायाच्छत्रु समपथस्थितम् ॥ २३
तमाश्रयन्तो बहुलास्तांस्तु राजा प्रपूजयेत्।
खरोष्ट्रबहुलो राजा शत्रुर्बन्धेन संस्थितः ॥ २४
बन्धनस्थोऽभियोज्योऽरिस्तथा प्रावृषि भूभुजा ।
हिमपातयते देशे स्थितं ग्रीष्मेऽभियोजयेत् ॥ २५
यवसेन्धनसंयुक्तः कालः पार्थिव हैमनः ।
शरवसन्तौ धर्मज्ञ कालौ साधारणौ स्मृतौ ॥२६
विज्ञाय राजा हितदेशकालौ दैवं त्रिकालं च तथैव बुद्ध्वा ।
यायात् परं कालविदाँ मतेन संचिन्त्य सार्धं द्विजमन्त्रविद्भिः ॥ २७ --- मत्स्य पुराण
वसन्त और शरद् ऋतुमें चतुरंगिणी सेनाको यात्रामें लगाना उचित है। जिस राजाके पास पैदल सेना अधिक हो, उसे विषम स्थानपर स्थित शत्रुपर आक्रमण करना चाहिये। राजाको चाहिये कि जो शत्रु अधिक वृक्षोंसे युक्त देशमें या कुछ कीचड़वाले स्थानपर स्थित हो, उसपर हाथियोंकी सेनाके साथ चढ़ाई करे। समतल भूमिमें स्थित शत्रुपर रथ और घोड़ोंकी सेना साथ लेकर चढ़ाई करनी चाहिये। जिस शत्रुओंके पास बहुत बड़ी सेना हो, राजाको चाहिये कि उनका आदर-सत्कार करे, अर्थात् उनके साथ संधि कर ले। वर्षा ऋतु में अधिक संख्यामें गधे और ऊँटोंकी सेना रखनेवाला राजा यदि शत्रुके बन्धनमें पड़ गया हो तो उस अवस्थामें भी उसे वर्षा ॠतुमें चढ़ाई करनी चाहिये। जिस देशमें बरफ गिरती हो, वहाँ राजा ग्रीष्म ऋतुमें आक्रमण करे। पार्थिव ! हेमन्त और शिशिर ऋतुओंका समय काष्ठ तथा घास आदि साधनोंसे युक्त होने से यात्राके लिये बहुत अनुकूल रहता है। धर्मज्ञ ! इसी प्रकार शरद और वसन्त- ऋतुओंके काल भी अनुकूल माने गये हैं । राजाको देश-काल और त्रिकालज्ञ ज्योतिषीसे यात्राकी स्थितिको भलीभाँति समझकर उसी प्रकार पुरोहित और मन्त्रियोंके साथ परामर्श कर विजय यात्रा करनी चाहिये ॥ १९ - २७ ॥