- जीवन दुविधाओं के तेज सींगों के बीच एक निरंतर दोलन है। -- एच एल मेंकेन
- दुविधा जाके मन बसै, दयावंत जिय नाहिं।
- कबीर त्यागे ताहि को, भूलि देहि जनि बाहिं॥ -- कबीरदास
- अर्थात जिसके मन में दुविधाएं बसी हों और हृदय में दया-भाव नहीं है, ऐसे मनुष्य का साथ फौरन ही छोड़ देना चाहिए।
- फल के लिए प्रयत्न करो, परन्तु दुविधा में खड़े न रह जाओ। कोई भी कार्य ऐसा नहीं जिसे खोज और प्रयत्न से पूर्ण न कर सको। -- श्रीराम शर्मा
- दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम।
- न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए न उधर के हुए ।
- अर्थ : ऐसा काम किया गया कि हर तरह हानि हुई, कोई काम पूरा नहीं हुआ ।