तसलीमा नसरीन

कवि, स्तंभकार, उपन्यासकार

तसलीमा नसरीन (जन्म : २५ अगस्त, १९६२) बांग्लादेश तथा स्वीडेन की लेखिका, नारीवादी कार्यकर्ता, सेक्युलर मानवतावादी नारी हैं। वे पेशे से चिकित्सक हैं। वे मजहब की आलोचना करने के लिये प्रसिद्ध हैं। इसी के कारण बांग्लादेश के कट्टरपन्थियों के निशाने पर हैं। वे अपनी पुस्तक "लज्जा" की बांग्लादेश में कड़ी आलोचना के बाद लगभग तीन दशकों से निर्वासन में रह रही हैं। कट्टरपंथी संगठनों द्वारा उन्हें जान से मारने की धमकी के बाद बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था, जिन्होंने उन पर इस्लाम विरोधी विचारों का आरोप लगाया था। हालाँकि उसके पास स्वीडिश नागरिकता है और वह पिछले दो दशकों में अमेरिका और यूरोप में रहतीं रही है, लेकिन वह अधिकांशतः अल्प निवास परमिट पर भारत में रही है और उसने लंबे समय से देश में स्थायी रूप से रहने की इच्छा व्यक्त की है।

तसलीमा नसरीन (2010)
हरेक प्रतिबन्ध और सेन्सरशिप चोट पहुँचाता है, किन्तु देश-निकाला सबसे अधिक चोट पहुँचाता है।

उक्तियाँ

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  • वे लोग बलात्कारियों को बचाते हैं। ममता दी कहतीं है "कभी-कभी लड़के शरारती हो जाते हैं"। मुलायम जी कहते हैं कि "कभी-कभी लड़के गलती कर देते हैं"। -- (@taslimanasreen) अप्रैलl 10, 2014
  • मैं एक मुसलमान परिवार में जन्मी थी और मुसलमानों की स्त्रियाँ उत्पीड़न की शिकार हैं। -- "Islam is history: Taslima", तेलुगु पोर्टल (22 अगस्त, 2006).
  • अगर पैगम्बर मुहम्मद आज जीवित होते तो भी दुनिया भर के मुस्लिम कट्टरपंथियों का पागलपन देखकर हैरान रह जाते। -- (@taslimanasreen) 10 जून, 2022
  • कोई भी आलोचना से ऊपर नहीं है, कोई इंसान नहीं, कोई संत नहीं, कोई मसीहा नहीं, कोई पैगंबर नहीं, कोई भगवान नहीं। दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए आलोचनात्मक जांच आवश्यक है। -- (@taslimanasreen) 8 जून, 2022
  • भारत में संघर्ष है; यह संघर्ष दो अलग-अलग विचारों- धर्मनिरपेक्षता और कट्टरवाद के बीच है। मैं उन लोगों से सहमत नहीं हूं जो सोचते हैं कि संघर्ष हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच है। मेरे लिए यह संघर्ष मूल रूप से तर्कसंगत तार्किक सोच और तर्कहीन अंधविश्वास के बीच है। मेरे लिए यह आधुनिकता और आधुनिकतावाद-विरोध के बीच, मानवतावाद और बर्बरता के बीच, नवाचार और परम्परा के बीच संघर्ष है।
  • महिलाएं अब भी 'सेक्स ऑब्जेक्ट' हैं। अगर उन्हें बराबरी पर आना है तो हर लड़की को बुरी लड़की बनना होगा।
  • स्त्री को अपने शरीर पर ही अधिकार नहीं। विवाह जैसी संस्था में भी वह बलात्कार- वैवाहिक बलात्कार का शिकार होती रहती है। इसीलिए मैं हर लड़की को यह कहती हूं, अपने अधिकार के लिए, सम्मान के लिए वह बुरी बने। वह जितना ही बुरी बनेगी, व्यवस्था का विरोध करेगी, अपने को पाएगी. अपने सम्मान व बराबरी को पाएगी।
  • जिन पुरुषों और महिलाओं में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कैंसर आदि जैसी आनुवंशिक बीमारियों वाले खराब जीन हैं, उन्हें बच्चे पैदा नहीं करने चाहिए। उन्हें दूसरों को कष्ट पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं है।
  • मैं दुनिया में कहीं भी किसी भी अत्याचार की निंदा करती हूं। किन्तु बांग्लादेश के लोग जो फिलिस्तीनियों के खिलाफ अत्याचारों से परेशान हैं, उन्हें अपने देश में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा के बारे में भी उतना ही सोचना चाहिए।
  • इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म की बुनियादी बातों में ज्यादा फर्क नहीं है। समय के साथ ईसाई मत में धर्म और सरकार के मामले अलग हो गए, पर इस्लाम के साथ ऐसा नहीं हुआ। वह आज भी अपने प्राचीन स्वरूप में है। यही परिस्थिति धार्मिक कट्टरता और जिहाद को बढ़ावा देती है। मध्ययुगीन दुनिया में ईसाई मत की खिलाफत करने पर लोगों की हत्या कर दी जाती थी पर आज ऐसा नहीं है। मगर इस्लाम में आज भी यह स्थिति बरकरार है, धर्म का विरोध दंडनीय है।
  • मैं हमेशा से बहुत बहादुर रही हूं। ‘लज्जा’ के प्रकाशन के बाद कट्टरपंथियों का कड़ा प्रहार झेला। देश भी छोड़ना पड़ा। मगर मैं घबराई नहीं, क्योंकि मेरे अंदर किसी भी तरह के अत्याचार या भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं थी। महिलाओं की स्थिति और अधिकारों को लेकर मैं काफी संवेदनशील रही हूं। धनी और निर्धन के बीच की असमानता मिटे, चारों तरफ खुशहाली और तरक्की का माहौल हो। मैं एक ऐसे समाज की परिकल्पना करती हूं, जो शायद यूटोपियन हो, लेकिन मैं ऐसा ही सोचती हूं। ऐसे बदलाव के लिए संघर्ष का रास्ता काफी कठिन और लंबा है, यह मैं बखूबी समझती हूं। प्रतिबंध लगने के बावजूद मैंने अपने लेखन से किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया और ना ही कभी खामोश रही।
  • मुझे नहीं लगता कि मेरे और सलमान रुश्दी के लेखन में किसी भी तरह का साम्य है। सलमान रुश्दी फिक्शन लिखते हैं और मैं नॉन फिक्शन लिखती हूं। मेरा लेखन महिला अधिकारों की हिमायत करता है जबकि उनके लेखन में ऐसा नहीं है। मैं धर्म की आलोचनात्मक व्याख्या करती हूं, जो सलमान अपने लेखन में नहीं करते। मैंने आज तक जो भी लिखा उसके लिए कभी क्षमा याचना नहीं की, लेकिन सलमान के लिखे का विरोध होने पर उन्होंने क्षमा याचना की और बयान जारी किया।
  • मुझे नहीं लगता कि भारत एक असहिष्णु देश है। अधिकतर लोग एक दूसरे की आस्था के प्रति सहनशील होते हैं, ऐसा मेरा मानना है।
  • भारत में धर्मनिरपेक्ष लोग केवल हिंदू कट्टरपंथियों से सवाल क्यों पूछते हैं और मुस्लिम कट्टरपंथियों को छोड़ देते हैं। भारत में वास्तविक संघर्ष धर्मनिरपेक्षता और कट्टरपंथ के बीच, नये विचारों और परंपराओं के बीच तथा आजादी को महत्वपूर्ण समझने वाले और महत्वपूर्ण नहीं समझने वाले लोगों के बीच है।
  • ढाका हमले का आंतकी निब्रस इस्‍लाम तुर्की होप्‍स स्‍कूल, नॉर्थसाउथ और मोनाश यूनिवर्सिटी में पढ़ा था। इसके बाद उसका इस्‍लाम के नाम पर ब्रेनवॉश किया गया और वह आतंकी बन गया। ढाका हमले के सभी आतंकी अमीर परिवारों से थे और उन्‍होंने अच्‍छे स्‍कूलों से पढ़ाई की थी। कृपया यह मत कहिए कि गरीबी और निरक्षरता लोगों को इस्‍लामिक आतंकवादी बनाती है।
  • इस्‍लामिक आतंकवादी बनने के लिए आपको गरीबी, निरक्षरता, तनाव, अमेरिका की विदेश नीति और इस्राइल की साजिश की जरूरत नहीं है। आपको इस्‍लाम की जरूरत है।
  • कृपया मानवता के लिए अब यह कहना बंद कीजिए कि इस्‍लाम शांति का धर्म है। अब नहीं।
  • चूंकि दुनिया भर में मदरसों के ज़रिये ब्रेन वॉश किया जाता है, इसलिए हर मुल्क की सरकार को चाहिए कि इन मदरसों पर नज़र रखे, अपने नियंत्रण में रखे। आतंकवाद एक विचार है, वो इसी तरह खत्म किया जा सकता है। आतंकवादी को मारने से आतंकवाद खत्म नहीं होगा। उस विचार को खत्म करना होगा और वो मदरसों पर नियंत्रण कर संभव हो सकता है। आतंकवाद कंटेजियस होता है, वो ऐसा विचार है, जो एक शख्स से दूसरे तक पहुंचता है और इसी तरह आगे बढ़ता जाता है, फैलता जाता है।
  • मुस्लिम देशों की सरकारें धर्म को अपने राजनैतिक हितों के लिए इस्तेमाल करती है। इसीलिए मुस्लिम देशों ने कभी भी राज्य और धर्म को अलग करने की कोशिश ही नहीं की। इन देशों में कभी भी मॉडर्न लॉ लाने की कोशिश नहीं की जाती। वो सातवीं सदी के कानून के हिसाब से चलते हैं और सरकारें कभी उसे बदलने की कोशिश भी नहीं करतीं क्योंकि उन्हें उन धार्मिक कानूनों का राजनैतिक इस्तेमाल करना होता है। इसलिए इस्लाम अब सिर्फ इस्लाम नहीं रह गया है, ये अब पोलिटिकल इस्लाम हो चुका है और ये बदलाव बहुत खतरनाक है। उन्हें अपने धर्म को ज़िंदा रखने के लिए खून की ज़रूरत होती है। ये बहुत खतरनाक है।
  • यह सुनने में अच्छा लगता है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगनिस्तान में धार्मिक कारण से उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलेगी। यह बहुत अच्छा विचार है और बहुत ही उदार है। लेकिन मैं मानती हूं कि मुस्लिम समुदाय में मुझ जैसे लोग, स्वतंत्र विचारक और नास्तिक हैं जिनका उत्पीड़न पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में किया जाता है और उन्हें भारत में रहने का अधिकार मिलना चाहिए। -- नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पर बोलते हुए

इन्हें भी देखें

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