डा. सुभाष चन्द्र हिंदी लेखक, अनुवादक और संपादक हैं।

उक्तियाँ

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  • ब्राह्मणवाद की विचारधारा का निमार्ण इसलिए ही तो किया गया है कि वह शोषण को इस तरह वैधता प्रदान करे कि शोषण करने वाले के सामने कोई नैतिक संकट न खड़ा हो। शोषण वह सिर ऊंचा करके कर सके और दूसरी तरफ जिसका शोषण हो रहा है उसे वह शोषण नहीं, बिल्कुल सहज स्वाभाविक सी बात लगे। तभी शोषण का यह कारोबार इतना बेधड़क होकर चल सकता है, और चल रहा है। []
  • शासक वर्गों को हमेशा ही अध्यात्मिक धारा रास आती रही है। क्योंकि यह धारा शासकों के शोषण पर पर्दा डालती रही है उसकी दमनमूलक प्रतिमानों व आभिजात्य संस्कृति को समाज में स्वीकार्यता दिलाती रही है। शासक वर्गों ने आम नागरिकों को सदा निर्णायक मसलों से दूर रखा है दर्शन की इस धारा में इंसान की महत्ता को कमतर करके देखा गया। परमात्मा की पूजा-सेवा-भजन करने को मनुष्य का सर्वाधिक परम कार्य माना।[]
  • किंवदंतियों की रचना व प्रसार निरुददेश्य नहीं होता, बल्कि किसी विचार, मान्यता या मूल्य को लोगों में स्थापित करने के लिए होता है। किंवदंतियां चुपचाप अपना प्रभाव छोड़ती रहती हैं और एक समय के बाद सामान्य चेतना (कामन सेंस) का अविभाज्य हिस्सा बनकर समाज की चेतना को स्वतः ही प्रभावित करती रहती हैं।[]


सन्दर्भ

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