गणित उस ज्ञान एवम् अकादमिक विषय-क्षेत्र को कहते हैं जो कि मात्रा (संख्या), संरचना, दिक् तथा परिवर्तन जैसी अवधारणाओं पर केन्द्रित है।

गणितज्ञों और दार्शनिकों के उद्धरण

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जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है,
वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।
  • यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा।
तथा वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥ -- वेदाङ्ग ज्योतिष
जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है।
  • बहुभिर्प्रलापैः किम् त्रयलोके सचरारे।
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् गणितेन् बिना न हि॥ -- महावीराचार्य, जैन गणितज्ञ
बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है। उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता।
  • लौकिके वैदिके वापि तथा सामयिकेऽपि यः।
व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते॥ -- महावीराचार्य द्वारा रचित गणितसारसङ्ग्रह में गणितशास्त्रप्रशंसा के अन्तर्गत
अर्थ: लौकिक, वैदिक तथा सामयिक में जो व्यापार है वहाँ सर्वत्र संख्या का ही उपयोग होता है।
  • गण्यते संख्यायते तद्गणितम्। तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते। -- भारतीय गणितज्ञ गणेश दैवज्ञ, अपने ग्रन्थ बुद्धिविलासिनी में
जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है।
  • भोज्यं यता सर्वरसं विनाज्यं राज्यं यथा राजविवर्जितं च।
सभा न भातीव सुवक्तृहीना गोलानभिज्ञो गणकस्तथात्र॥ -- भास्कराचार्य, सिद्धान्तशिरोमणि, गोलाध्याय, श्लोक 4
खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य, तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा महत्वहीन होती है।
  • गणित एक भाषा है।
    • जे. डब्ल्यू. गिब्ब्स , अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री।
  • काफी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है। इसका सम्बन्ध सी.डी से , कैट-स्कैन से , पार्किंग-मीटरों से , राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है। गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिए है, ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं।
    • गरफंकल , १९९७
  • गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी।
    • प्रो. हाल
  • लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ।
  • यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम बृहस्पति पर राकेट भेज पाते।

महावीराचार्य द्वारा रचित सणितसारसङ्ग्रह में गणितशास्त्रप्रशंसा

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  • लौकिके वैदिके वापि तथा सामयिकेऽपि यः।
व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते॥९॥
  • कामतन्त्रेऽर्थशास्त्रे च गान्धर्वे नाटकेऽपि वा।
सूपशास्त्रे तथा वैद्ये वास्तुविद्यादिवस्तुषु॥१०॥
  • छन्दोऽलंकारकाव्येषु तर्कव्याकरणादिषु।
कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं परम्॥११॥
  • सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहणे ग्रहसंयुतौ।
त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्रांगीकृतं हि तत्॥१२॥
  • द्वीपसागरशैलानां संख्याव्यासपरिक्षिपः।
भवनव्यन्तरज्योतिर्लोककल्पाधिवासिनाम्॥१३॥
  • नारकाणां च सर्वेषां श्रेणीबन्धेन्द्रकोत्कराः।
प्रकीर्णकप्रमाणाद्या बुध्यन्ते गणितेन् ते॥१४॥
  • प्राणिनां तत्र संस्थानमायुरष्टगुणादयः।
यात्राद्यास्संहिताद्याश्च सर्वे ते गणिताश्रयाः॥१५॥
  • बहुभिर्प्रलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे।
यत्किंचिद्वस्तु तत् सर्वं गणितेन् बिना न हि॥१६॥
  • तीर्थकृद्भ्यः कृतार्थेभ्यः पूज्येभ्यो जगदीश्वरैः।
तेषां शिष्यप्रशिष्येभ्यः प्रसिद्धाद्गुरुपर्वतः ॥१७॥
  • जलधेरिव रत्नानि पाषाणादिव काञ्चनम्।
शुक्तेर्मुक्ताफलानीव सङ्ख्याज्ञान महोदधे ॥१८॥ []

अर्थ: लौकिक, वैदिक तथा सामयिक में जो व्यापार है वहाँ सर्वत्र संख्या का ही उपयोग होता है। कामशास्त्र, अर्थशास्त्र, गन्धर्वशास्त्र, गायन, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, आयुर्वेद, छन्द, अलंकार, काव्य, तर्क, व्याकरण आदि में तथा कलाओं में समस्त गुणों में गणित अत्यन्त उपयोगी है। सूर्य आदि ग्रहों की गति ज्ञात करने में, देश और काल को ज्ञात करने में सर्वत्र गणित अंगीकृत है। द्वीपों, समूहों और पर्वतों की संख्या, व्यास और परिधि, लोक, अन्तर्लोक, स्वर्ग और नरक के निवासी, सब श्रेणीबद्ध भवनों, सभा एवं मन्दिरों के निर्माण गणित की सहायता से ही जाने जाते हैं। अधिक कहने से क्या प्रयोजन? तीनों लोकों में जो भी वस्तुएँ हैं उनका अस्तित्व गणित के बिना नहीं हो सकता।

सन्दर्भ

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