खादी
- स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना जो हमें दूर को छोड़कर अपने समीपवर्ती प्रदेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है। …अर्थ के क्षेत्र में मुझे अपने पड़ोसियों द्वारा बनायी गयी वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिये और उन उद्योगों की कमियां दूर करके उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करना चाहिए। मुझे लगता है कि यदि स्वदेशी को व्यवहार में उतारा जाये तो मानवता के स्वर्णयुग की अवतारणा की जा सकती है। -- महात्मा गांधी
- मेरा पक्का विश्वास है कि हाथ-कताई और हाथ बुनाई के पुनरूज्जीवन से भारत के आर्थिक और नैतिक पुनरूद्धार में सबसे बड़ी मदद मिलेगी। करोड़ों आदमियों को खेती की आय में वृद्धि करने के लिए कोई सादा उद्योग चाहिए। बरसों पहले व गृह-उद्योग कताई का था, और करोड़ों को भूखों मरने से बचाना हो तो उन्हें इस योग्य बनाना पड़ेगा कि वे अपने घरों में फिर से कताई जारी कर सकें और हर गांव को अपना ही बुनकर फिर से मिल जाये। -- महात्मा गांधी
- आयात किए हुए विदेशी कपड़े अथवा मिल में बने हुए देशी कपड़े में कोई विशेष अंतर नहीं है। मेरी नज़रों में दोनों ही बराबर हैं। क्योंकि दोनों ही दशाओं में पैसे का बहुत बड़ा भाग अमीर एवं बड़े-बड़े मिल मालिकों के पास चला जाता है। -- महात्मा गांधी
- यह मैं जानता हूं कि खादी पहनने वालों में भी दगाबाज, धेखेबाज और व्याभिचारी होते हैं। पर ये दोष खादी न पहनने वालों में भी पाए जाते हैं। ये दोष सामान्य है। जो खादी नहीं पहनते उनमें भी तो धेखेबाज, दगाबाज और व्याभिचारी होते हैं। खादी पहनने वाला दगाबाज या धेखेबाज है पर उसमें इतनी तो अच्छी बात जरूर है कि वह खादी पहनता है। -- महात्मा गांधी
- हिन्दुस्तान सबसे पहले अपनी पोशाक और भाषा को अपनाये। – महात्मा गाँधी
- गांव की जरुरत की हर चीज़ गांव में ही बननी चाहिए। खादी इसकी पहली सीढ़ी है। – महात्मा गाँधी
- खादी का मतलब है देश के सभी लोगो की आर्थिक समानता और स्वतन्त्रा का आरंभ है। – महात्मा गाँधी
- चरखा एक सिम्बल यानी एक संकेत-चिह्न या प्रतीक है श्रम-निष्ठा का। दुनिया में शोषण किसलिये चलता है? इसीलिए कि कुछ लोग श्रम करते हैं और दूसरे लोग उससे लाभ उठाना चाहते हैं। अगर सब लोग श्रम करें, श्रम-निष्ठा पैदा हो, तो शोषण खत्म हो जाए और उत्पादन भी बढ़े। इसलिए म. गांधीजी ने एक छोटी-सी चीज देश के सामने रखी। आज बेकारी बढ़ रही है इस हालत में यह चीज चले तो घर-घर सूत होगा, कपड़ा बनेगा। लेकिन उस कपड़े का और सूत का उतना महत्व नहीं है जितना श्रम-निष्ठा का महत्व है। -- विनोबा भावे
- ये उपलब्धियां उत्साहित करती हैं! खादी से देशवासियों का यह जुड़ाव रोजगार को बढ़ावा देने के साथ-साथ नित नए रिकॉर्ड बना रहा है।-- भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, मई २०२३
खादी गीत
सम्पादन- (सोहनलाल द्विवेदी)
खादी के धागे-धागे में अपनेपन का अभिमान भरा,
माता का इसमें मान भरा, अन्यायी का अपमान भरा।
खादी के रेशे-रेशे में अपने भाई का प्यार भरा,
मां-बहनों का सत्कार भरा, बच्चों का मधुर दुलार भरा।
खादी की रजत चंद्रिका जब, आकर तन पर मुसकाती है,
जब नव-जीवन की नई ज्योति अंतस्थल में जग जाती है।
खादी से दीन निहत्थों की उत्तप्त उसांस निकलती है,
जिससे मानव क्या, पत्थर की भी छाती कड़ी पिघलती है।
खादी में कितने ही दलितों के दग्ध हृदय की दाह छिपी,
कितनों की कसक कराह छिपी, कितनों की आहत आह छिपी।
खादी में कितनी ही नंगों-भिखमंगों की है आस छिपी,
कितनों की इसमें भूख छिपी, कितनों की इसमें प्यास छिपी।
खादी तो कोई लड़ने का, है भड़कीला रणगान नहीं,
खादी है तीर-कमान नहीं, खादी है खड्ग-कृपाण नहीं।
खादी को देख-देख तो भी दुश्मन का दिल थहराता है,
खादी का झंडा सत्य, शुभ्र अब सभी ओर फहराता है।
खादी की गंगा जब सिर से पैरों तक बह लहराती है,
जीवन के कोने-कोने की, तब सब कालिख धुल जाती है।
खादी का ताज चांद-सा जब, मस्तक पर चमक दिखाता है,
कितने ही अत्याचार ग्रस्त दीनों के त्रास मिटाता है।
खादी ही भर-भर देश प्रेम का प्याला मधुर पिलाएगी,
खादी ही दे-दे संजीवन, मुर्दों को पुनः जिलाएगी।
खादी ही बढ़, चरणों पर पड़ नुपूर-सी लिपट मना लेगी,
खादी ही भारत से रूठी आज़ादी को घर लाएगी।