कोएनराड एल्स्ट

बेल्जियम के प्राच्यविद् (जन्म: 1959)

कोएनराड एल्स्ट (Koenraad Elst ; जन्म 7 अगस्त 1959) बेल्जियम के एक लेखक तथा हिन्दू-समर्थक दक्षिणपन्थी विचारक हैं। वे इस विचार के समर्थक हैं कि आर्य भारतीय मूल के हैं तथा वे भारत से प्रवास करते हुए अन्य देशों में जा बसे हैं। वे फ्लेमी आन्दोलन (Flemish movement) से भी जुड़े हैं जो प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की मांग करती है। एल्स्ट, २० से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। उनकी ये पुस्तकें इतिहास, हिन्दुत्व, और भारतीय राजनीति से सम्बन्धित हैं। उनकी रुचि के प्रमुख विषय ये हैं- हिन्द-यूरोपीय भाषाओं का मूल, राम मन्दिर विवाद, भारत में पन्थनिरपेक्षता, तथा महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक विरासत।

मैं न तो हिन्दू हूँ और न ही राष्ट्रवादी। और मेरे आँख और कानों का उपयोग करने के लिये यह आवश्यक भी नहीं है कि मैं ये सब बनूँ।
  • हिंदू धर्म का सार 'सत्य' है न कि 'सहनशीलता' या 'सभी धर्मों के लिए समभाव'। सतही तौर पर ईसाई धर्म और इस्लाम के साथ समस्या उनकी असहिष्णुता और कट्टरता है। लेकिन यह असहिष्णुता इन धर्मों की असत्यता का परिणाम है। यदि आपका 'धर्म' भ्रम पर आधारित है, तो आप इस धर्म की तर्कपूर्ण परीक्षा की अनुमति ही नहीं देंगे और इसको अधिक स्थायी विचार प्रणालियों से बचायेंगे। एकेश्वरवादी धर्मों के साथ मूल समस्या यह नहीं है कि वे असहिष्णु हैं बल्कि यह कि वे असत्य या अनृत हैं। -- "Sita Ram Goel: Jesus Christ - An Artifice for Aggression (1994)" में
  • १९वीं शताब्दी के मध्य तक किसी भी भारतीय ने यह बात नहीं सुनी थी कि उनके पूर्वज मध्य एशिया से आये हुए आर्य आक्रमणकारी थे जिन्होंने यहाँ के मूल निवासियों की सभ्यता को नष्ट करके उन्हें गुलाम बनाया था।
  • जनजातियों (Tribes) को अब प्रायः "आदिवासी" कहा जाता है। इस शब्द को लगभग 100 साल पहले छद्म शास्त्रीय मिशनरियों ने उछाला था। इस शब्द में निहित अर्थ के विपरीत, गैर-जनजातीय लोग भी भी औसतन उतने ही 'आदिवासी' हैं। ये जनजातियाँ "आत्मा की खेती करने वालों" के लिये उत्कृष्ट शिकार-स्थली हैं और वे इन्हें अक्सर गलत तरीके से अ-हिंदू "प्राकृतिक एकेश्वरवादी" के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो पहले से ही ईसाई धर्म के करीब हैं। फिर भी धर्मशास्त्र और सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से वे स्पष्ट रूप से हिंदू समाज का एक बाहरी हिस्सा हैं और बुतपरस्त (Pagan) और "नरक-बद्ध" (hell-bound) हैं।
  • जनजातीय अन्तर्विवाह (सगोत्रीय विवाह) में हिन्दुओं की जाति व्यवस्था की व्याख्या छिपी हुई है। हिन्दुओं का वैदिक समाज वर्णाश्रम की सुव्यवस्था से युक्त एक उन्नत और विभेदित समाज था। उत्तर-पश्चिम से आरम्भ होकर यह समाज भारत के आन्तरिक भागों में फैला। और अधिक जनजातियाँ इसमें सम्मिलित हुईं। लेकिन वे अपनी विशिष्ट परम्पराओं, जैसे सगोत्रीय विवाह, का पालन करने के लिये स्वतन्त्र थे। इस प्रकार अन्तर्विवाह करने वाले विभिन्न प्राचीन जनजातीय समाज ही आज की 'जातियाँ' हैं। -- कोएनराड एल्स्ट, The Sarna : a case study in natural religion
  • "गुलामी का इस्लामी सिद्धान्त" इस्लाम पर विश्वास करने वाले और उस पर विश्वास न करने वालों के बीच अपरिहार्य संघर्ष के सिद्धान्त के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था। ... और जब कभी मुसलमान पगानों को अपने अधिकार में ले लेते थे तो प्रायः इन पगानों को गुलाम के रूप में बेच दिया जाता था।" -- एल्स्ट की Indigenous Indians, 375, 381 में ; के.एस. लाल (1994) द्वारा Muslim slave system in medieval India. नयी दिल्ली : अदित्य प्रकाशन में उद्धृत
  • भारत का संविधान हिंदू धर्म के खिलाफ भेदभाव करता है तथा इसके परिणामस्वरूप हिंदू धर्म को अगली पीढ़ी तक प्रसारित करने में बड़ी कठिनाई होती है। यह भारत के सबसे प्रमुख रहस्यों में से एक है। अधिकांश शिक्षाविद् इस जानकारी को दबाते हैं और जोर-शोर से यह दिखावा करते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, अर्थात ऐसा राज्य जहाँ कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं। ऐसा नहीं है, और यदि कोई ऐसा संवैधानिक सुधार लाया जाता है जो भारत को एक सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य में बदल दे, जिसमें किसी भी धर्म के साथ भेदभाव न हो, तो सेक्युलरों के लिए ऐसे संवैधानिक सुधार पर आपत्ति करना कठिन होगा।
  • गांधी और गोडसे के बीच संघर्ष धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच का संघर्ष नहीं है यदि हम गोडसे को धर्मनिरपेक्षता और गांधी को सांप्रदायिकता से नहीं जोड़े। -- मैंने महात्मा को क्यों मारा, में

बाहरी कड़ियाँ

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इन्हें भी देखें

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