धर्म के ये दस लक्षण होते हैं:- धृति (धैर्य), क्षमा, दम (मन को अधर्म से हटा कर धर्म में लगाना) अस्तेय (चोरी न करना), शौच (सफाई), इन्द्रियों को वश में रखना, धी (बुद्धि), विद्या, सत्य, अक्रोध (क्रोध न करना)।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥ -- भगवद्गीता
जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है (स्थिर है)।
भले ही कोई मनुष्य अन्य सारी इन्द्रियों को क्यों न जीत ले, किन्तु जब तक जीभ को नहीं जीत लिया जाता, तब तक वह इन्द्रियजित नहीं कहलाता। किन्तु यदि कोई मनुष्य जीभ को वश में करने में सक्षम होता है, तो उसे सभी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण करने वाला माना जाता है।
जैसे विद्वान् सारथि घोड़ों को नियम में रखता है वैसे मन और आत्मा को खोटे कामों में खींचने वाले विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों के निग्रह में प्रयत्न सब प्रकार से करें।
जीवात्मा इन्द्रियों के वश होकर निश्चित बड़े-बड़े दोषों को प्राप्त होता है। (इसके विपरीत) जब इन्द्रियों को अपने वश में कर लेता है तभी सिद्धि को प्राप्त होता है।