आर्य समाज
वैदिक समाज
आर्यसमाज हिन्दुओं का एक अत्यन्त प्रगतिशील संगठन है जिसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने की थी। "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" इसका ध्येयवाक्य है, जिसका अर्थ है - विश्व को आर्य बनाते चलो।
आर्यसमाज के दस नियम
सम्पादन- हर एक आर्य समाजी को भगवान में अटूट विश्वास होना चाहिए और भगवान ही सारे ज्ञान का प्राथमिक स्रोत है।
- इस संसार में सिर्फ भगवान की ही पूजा के योग्य हैं, परन्तु उनकी पूजा किसी मूर्ति के रूप में नहीं होनी चाहिए क्यूंकि भगवान का कोई एक स्थायी स्वरूप नहीं है।
- वेदों ही मूल सिद्धांत हैं और वेद ही सच्चे ज्ञान के ग्रंथ हैं।
- हर एक व्यक्ति को सच को अपनाने और और झूठ को त्यागने के लिए तत्पर रहना है।
- हर कार्य को धर्म के अनुसार ही करना है और कार्य को करने से पहले अध्ययन करना है कि वह सही है या नहीं।
- आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया के लिए अच्छा करना है, ताकि सभी लोगों के लिए भौतिक समृद्धि, आध्यात्मिक समृद्धि और सामाजिक समृद्धि लाई जा सके।
- सभी लोगों के साथ प्यार और न्याय के साथ व्यवहार करना है।
- हर व्यक्ति को अज्ञान को दूर और ज्ञान का प्रचार करना चाहिए।
- दूसरों के उत्थान पर ही किसी का व्यक्तिगत उत्थान निर्भर होना चाहिए।
- व्यक्तिगत भलाई के ऊपर संसार की भलाई को रखा जाए।
अन्य विचार
सम्पादनआर्यसमाज पर महापुरुषों के विचार
सम्पादन- आर्यसमाज दौड़ता रहेगा तो हिन्दू समाज चलता रहेगा। आर्यसमाज चलता रहेगा, तो हिन्दू समाज बैठ जायेगा। आर्य समाज बैठ जायेगा तो हिन्दू समाज सो जायेगा। यदि आर्यसमाज सो गया तो हिन्दू समाज मर जायेगा। - मदन मोहन मालवीय
- सत्यार्थ प्रकाश 'ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें खोखली करने वाला' है। दयानन्द सरस्वती 'भारतीय अशांति के जन्मदाता' हैं। -- वेलेन्टाइन शिरोल (Valentine Chirole) नामक एक अंग्रेज, 'इंडियन अनरेस्ट' (indian unrest) नामक अपनी पुस्तक में