बाजुबंद पुरुष को शोभित नहीं करते और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार। न स्नान, न चन्दन, न फूल और न सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं। केवल सुसंस्कृत वाणी ही मनुष्य को अलंकृत करती है। (साधारण) आभूषण नष्ट हो जाते हैं, वाणी ही (सनातन) आभूषण है॥
ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शूरता का वाणी पर संयम रखना, ज्ञान का शान्ति भाव, वेदशास्त्र के ज्ञान का नम्रता, वित्त का सत्पात्र में व्यय करना, तपश्चरण का क्रोध न होना, सामर्थ्यवान् का सहिष्णुता और धर्म का आभूषण निष्कपट होता है परन्तु इन सम्पूर्ण गुणों का कारणभूत "शील" सबका श्रेष्ठाभूषण है।
हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ॥
हाथ का भूषण दान है, कण्ठ का भूषण सत्य है, कान का भूषण शास्त्र है, (तो फिर) अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता ?
दानेन तुल्यं सुहृदास्ति नान्यो
लोभाच्च नान्योऽस्ति रिपुः पृथिव्याम्।
विभूषणं शीलसमं न चान्यत्
सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत्॥
दान के समान अन्य कोई मित्र नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है। शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है।
ताराणां भूषणं चन्द्रः नारीणां भूषणम् पतिः ।
पृथिव्यां भूषणम् राज्ञः विद्या सर्वस्य भूषणम् ॥
चन्द्रमा तारों का आभूषण है, नारी का भूषण पति है । पृथ्वी का अभूषण राजा है और विद्या सभी का आभूषण है ।
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण हैं। -- स्वामी विवेकानन्द
लज्जा युवाओं के लिए एक आभूषण, लेकिन बुढ़ापे के लिए एक तिरस्कार है। -- अरस्तू
मौन ज्ञानियों की सभा में अज्ञानियों का आभूषण है। -- भर्तृहरि
क्षमा वीरस्य भूषणम् । (क्षमा वीरों का आभूषण है।)
नारी का आभूषण शील और लज्जा हैं। बाह्य आभूषण उसकी शोभा नहीं बढा सकते हैं। -- बृहत्कल्पभाष्य
नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के सच्चे आभूषण होते हैं। -- तिरुवल्लुवर