अरस्तु

प्रचीन यूनानी दार्शनिक (384 ईपू – 322 ईपू)
(अरस्तू से अनुप्रेषित)
अरस्तु

उक्तियाँ

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  • मनुष्य अपनी सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है।
  • अपने दुश्मनों पर विजय पाने वाले की तुलना में मैं उसे शूरवीर मानता हूं जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है; क्योंकि सबसे कठिन विजय अपने आप पर विजय होती है।
  • शिक्षा की जड़ें कड़वी होती है लेकिन फल मीठे होते है।
  • हम वो है जो हम बार बार करते है। उत्कृष्टता कोई तरीका नहीं बल्कि आदत है।
  • शिक्षित मन की यह पहचान है की वो किसी भी विचार को स्वीकार किए बिना उसके साथ सहज रहे।
  • हमारे जीवन के गहनतम अंधकार के वक़्त हमें अपना ध्यान रोशनी देखने पर केंद्रित करना चाहिए।
  • एक ही अच्छाई है, ज्ञान। एक ही बुराई है अज्ञानता।
  • शिक्षा बुढ़ापे के लिए सबसे अच्छा प्रावधान है।
  • चरित्र को हम अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी माध्यम कह सकते हैं।
  • जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है।
  • संकोच युवाओं के लिए एक आभूषण है, लेकिन बड़ी उम्र के लोगों के लिए धिक्कार।
  • अच्छा व्यवहार सभी गुणों का सार है।
  • डर बुराई की अपेक्षा से उत्पन्न होने वाले दर्द है।
  • मनुष्य प्राकृतिक रूप से ज्ञान कि इच्छा रखता है।
  • जो सबका मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता है।
  • लोकतंत्र तब होगा जब गरीब ना कि धनाड्य शाशक हों।
  • कोई भी उस व्यक्ति से प्रेम नहीं करता जिससे वो डरता है।
  • अगर औरतें नहीं होतीं तो इस दुनिया की सारी दौलत बेमानी होती।

बाहरी कडियाँ

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