अटल बिहारी वाजपेयी

भारत के दसवें प्रधानमंत्री
(अटल बिहारी वाजपयी से अनुप्रेषित)
अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी

सम्पादन
  • गरीबी बहुआयामी है। यह हमारी कमाई के अलावा स्वास्थ, राजनीतिक भागीदारी, और हमारी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति पर भी असर डालती है।
  • भारत में भारी जन भावना थी कि पाकिस्तान के साथ तब तक कोई सार्थक बातचीत नहीं हो सकती जब तक कि वो आतंकवाद का प्रयोग अपनी विदेशी नीति के एक साधन के रूप में करना नहीं छोड़ देता।
  • मैं हिन्दू परम्परा में गर्व महसूस करता हूँ लेकिन मुझे भारतीय परम्परा में और ज्यादा गर्व है।
  • मुझे अपने हिंदुत्व पर अभिमान है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं मुस्लिम-विरोधी हूँ।
  • आप दोस्तों को बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसियों को नहीं।
  • जलना होगा, गलना होगा। कदम मिलकर चलना होगा।
  • अगर परमात्मा भी आ जाए और कहे कि छुआ-छूत मानो, तो मैं ऐसे परमात्मा को भी मानने को तैयार नहीं हूँ किन्तु परमात्मा ऐसा कह ही नहीं सकता।
  • एटम बम का जवाब क्या है? एटम बम का जवाब एटम बम है और कोई जवाब नहीं।
  • मनुष्य-मनुष्य के संबंध अच्छे रहें, सांप्रदायिक सद्‌भाव रहे, मजहब का शोषण न किया जाए, जाति के आधार पर लोगों की हीन-भावना को उत्तेजित न किया जाए, इसमें कोई मतभेद नहीं है।
  • कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि देश मूल्यों के संकट में फंसा है।
  • मुझे शिक्षकों का मान-सम्मान करने में गर्व की अनुभूति होती है। अध्यापकों को शासन द्वारा प्रोत्साहन मिलना चाहिए। प्राचीनकाल में अध्यापक का बहत सम्मान था। आज तो अध्यापक पिस रहा है।
  • सूर्य एक सत्य है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। मगर ओस भी तो एक सच्चाई है, यह बात अलग है कि क्षणिक है।
  • निराशा की अमावस की गहन दिशा के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ तनिक ऊँचा उठाकर देखें।
  • हमें उम्मीद है कि दुनिया प्रबुद्ध स्वार्थ की भावना से कार्य करेगी।
  • गरीबी बहुआयामी है। यह पैसे की आय से परे शिक्षा, स्वास्थ्य की देखरेख, राजनीतिक भागीदारी और व्यक्ति की अपनी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति तक फैली हुई है।
  • एक विरोधी के द्वारा हमारे परमाणु हथियारों को विशुद्ध रूप से परमाणु अभियान के विरुद्ध धमकाने के रूप में बताता हैं।
  • जो लोग हमें पूछते हैं कि हम पाकिस्तान के साथ वार्ता कब करेंगे शायद वे यह नहीं जानते हैं की पिछले 55 सालों में, पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए हर पहल निरपवाद रूप से भारत ने ही की है।
  • वैश्विक स्तर पर आज परस्पर निर्भरता का मतलब विकाशशील देशों में आर्थिक आपदाओं का विकसित देशों पर प्रतिघात करना होगा।
  • हमें विश्वास है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और बाकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के भारत के विरुद्ध सीमा पार आतंकवाद को स्थाई और पारदर्शी रूप से खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
  • वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी केवल उतनी ही प्रभावी हो सकती है जितनी उसके सदस्यों की अनुमति है।
  • एक सार्वभौमिक धारणा से संयुक्त राष्ट्र की अनोखी वैधता बह रही है कि यह एक देह या देशों के एक छोटे से समूह के हितों की तुलना में एक बड़े उद्देश्य को पाने की कोशिश करती है।
  • एक अंतर्निहित दृढ विश्वास था की संयुक्त राष्ट्र अपने घटक सदस्य देशों के योग से अधिक मजबूत होगा।
  • ऐसे किसी देश को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक गठबंधन के साथ साझेदारी की अनुमति नहीं दी जनी चाहिए जबकि वो आतंकवाद को सहायता करने, उकसाने और प्रायोजित करने लगा हुआ हो।
  • सेवा कार्यों की उम्मीद सरकार से नहीं की जा सकती। उसके लिए समाजसेवी संस्थाओं को ही आगे उठना पड़ेगा।
  • भारत के ऋषिओं-महर्षियों ने जिस एकात्मक जीवन के ताने बने को बुना था, आज वह उपहास का विषय बनाया जा रहा है।
  • पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी, ऊँचा दिखाई देता है। जड़ में खड़ा आदमी, नीचा दिखाई देता है। न आदमी ऊँचा होता है, न नीचा होता है, न बड़ा होता है, न छोटा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होता है।
  • किसी संत कवि ने कहा है कि मनुष्य के ऊपर कोई नहीं होता, मुझे लगता है कि मनुष्य के ऊपर उसका मन होता है।
  • इंसान बनो, केवल नाम से नहीं, रूप से नहीं, शक्ल से नहीं, हृदय से, बुद्धि से, सरकार से, ज्ञान से।
  • छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
  • पड़ोसी कहते हैं कि एक हाथ से ताली नहीं बजती, हमने कहा कि चुटकी तो बज सकती है।
  • मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान जीतने से मन ही जीते जाते हैं।
  • आदमी को चाहिए कि वह परिस्थितियों से लादे, एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।
  • मनुष्य का जीवन अनमोल निधि है। पुण्‍य का प्रसाद है। हम सिर्फ अपने लिए न जिएं, ओरों के लिए भी जिएं, औरों के लिए भी जिए।
  • जीवन जीना एक कला है। एक विज्ञान है दोनों का समन्‍वय आवश्यक है।
  • आदमी की पहचान उसके धन या आसन से नहीं होती, उसके मन से होती है। मन की फकीरी पर कुबेर की संपदा भी रोती है।
  • कपड़ों की दुधिया सफेदी जैसे मन की मलिनता को नहीं छिपा सकती।
  • जो जितना ऊंचा होता है, उतना ही एकाकी होता है। हर बार को खुद ही ढोता है, चेहरे पर मुस्कान चिपका, मन ही मन में रोता है।
  • ऐसी खुशियां जो हमेशा हमारा साथ दें, कभी नहीं थीं, अभी नहीं हैं और कभी नहीं रहेंगी।
  • पृथ्वी पर मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जो भीड़ में अकेला और अकेले में भीड़ से घिरे होने का अनुभव करता है।
  • टूट सकते हैं मगर झुक नहीं सकते।
  • पौरुष, पराक्रम वीरता हमारे रक्त के रंग में मिली है। यह हमारी महान परम्परा का अंग है। यह संस्कारों द्वारा हमारे जीवन में ढाली जाती है।
  • देश एक मन्दिर है, हम पुजारी हैं, राष्ट्रदेव की पूजा में हमने अपने को समर्पित कर देना चाहिए।
  • हम अहिंसा में आस्था रखते हैं और चाहते हैं कि वैश्विक के संघर्षों का समाधान शांति और समझौते के मार्ग से हो।
  • मानव और मानव के बिच में जो भेद की दीवारें कड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रिय अभियान की आवश्यकता है।
  • यह संघर्ष जितने बलिदान की मांग करेगा, वे बलिदान दिए जाएंगे, जितने अनुशासन का तकाजा होगा, यह देश उतने अनुशासन का परिचय देगा।
  • वर्तमान शिक्षा पद्धति की विकृतियों से, उसके दोषों से, कमियों से सारा देश परिचित है। मगर नई शिक्षा नीति कहां है?
  • शहीदों का रक्त अभी गीला है और चिता की रख में चिंगारियां बाकी हैं। उजड़े हुए सुहाग और जंजीरों में जकड़ी हुई जवानियाँ उन उग्त्याचारों की गवाह हैं।
  • इतिहास ने, भूगोल ने, परंपरा ने, संस्कृति ने, धर्म ने, नदियों ने हमें आपस में बांधा है।
  • मनुष्य-मनुष्य के बीच में भेदभाव का व्यवहार चल रहा है। इस समस्या का हल करे के लिए हमें एक राष्ट्रित अभियान की आवश्यकता है।
  • राष्ट्र कुछ संप्रदायों अथवा जनसमूहों का सम्मुचय मात्र नहीं, अपितु एक जीवमान ईकाई है।
  • अगर परमात्मा भी आ जाए और कहे कि छूआछूत मनो, तो मैं ऐसे परमात्मा को भी मानने को तैयार नहीं हूँ लेकिन परमात्मा ऐसा कह ही नहीं सकता।
  • हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसकी कीर्ति के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे पग नहीं हटाएंगे।
  • इतिहास में हुई भूल के लिए आक किसी से बदला लेने का समय नहीं है, लेकिन उस भूल को ठीक करने का सवाल है।
  • कंधों से कंधा लगाकर, कदम से कदम मिलकर हमें अपनी जीवन यात्रा को ध्येय सिद्धि के शिखर तक ले जाना है। भावी भारत हमारे प्रयत्नों और परिश्रम पर निर्भर करता है। हम अपना कर्तव्य पालन करें, हमारी सफलता सुनिश्चित है।
  • हरिजनों के कल्याण के साथ गिरिजनों तत्गा अन्य कबीलों की दशा सुधरने का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है।
  • भारत कोई इतना छोटा देश नहीं है कि कोई उसको जेब में रख ले और वह उसका पिछलग्गू हो जाए। हम अपनी आजादी के लिए लड़े, दुनिया की आजादी के लिए लड़े।
  • अमावस के अभेद्य अंधकार का अंतःकरण पूर्णिमा की उज्ज्वलता का स्मरण कर थर्रा उठता है।
  • जीवन के फूल को पूर्ण ताकत से खिलाएं।
  • इस देश में पुरुषार्थी नवजवानों की कमी नहीं है, लेकिन उनमे से कोई कार बनाने का कारखाना नहीं खोल सकता, क्योंकि किसी को प्रधानमंत्री के घर में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त नहीं है।
  • देश को हमसे बड़ी आशाएं हैं। हम परिस्थिति की चुनौती को स्वीकार करें। आँखों में एक महान भारत के सपने, ह्रदय में उस सपने को सत्य सृष्टि में परिणत करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करने का संकल्प, भुजाओं में समूची भारतीय जनता जो समेटकर उसे सीने से लगाए रखने का सात्विक बल और पैरों में युग परिवर्तन की गति लेकर हमें चलना है।
  • अगर भारत को बहु राष्ट्रीय राज्य के रूप में वर्णित करने की प्रवृति को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत के अनेक टुकड़ों में बंट जाने का खतरा पैदा हो जाएगा।
  • इस देश में कभी मजहब के आधार पर, मत भिन्नता के उगधर पर उत्पीडन की बात नहीं उठी, न उठेगी, न उठनी चाहिए।
  • भारत के प्रति अनन्य निष्ठा रखने वाले सभी भारतीय एक हैं, फिर उनका मजहब, भाषा तथा प्रदेश कोई भी क्यों न हो।
  • कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ यह भारत एक राष्ट्र है, अनेक राष्ट्रीयताओं का समूह नहीं।
  • देश एक रहेगा तो किसी एक पार्टी की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक व्यक्ति की वजह से एक नहीं रहेगा, किसी एक परिवार की वजह से एक नहीं रहेगा। देश एक रहेगा तो देश की जनता की देशभक्ति की वजह से रहेगा।
  • भारतीयकरण का एक ही अर्थ है भारत में रहने वाले सभी व्यक्ति, चाहे उनकी भाषा कुछ भी हो, वह भारत के प्रति अनन्य, अविभाज्य, अव्यभिचारी निष्ठा रखें।
  • मजहब बदलने से न राष्ट्रीयता बदलती है और न संस्कृति में परिवर्तन होता।
  • सभ्यता कलेवर है, संस्कृति उसका अन्तरंग। सभ्यता सूल होती है, संस्कृति सूक्ष्म। सभ्यता समय के साथ बदलती है, किंतु संस्कृति अधिक स्थायी होती है।
  • मनुष्य जीवन अनमोल निधि है, पुण्य का प्रसाद है। हम केवल अपने लिए न जिएं, औरों के लिए भी जिएं। जीवन जीना एक कला है, एक विज्ञान है। दोनों का समन्वय आवश्यक है।
  • मैं अपनी सीमाओं से परिचित हूं। मुझे अपनी कमियों का अहसास है।
  • नर को नारायण का रूप देने वाले भारत ने दरिद्र और लक्ष्मीवान, दोनों में एक ही परम तत्त्व का दर्शन किया है।
  • समता के साथ ममता, अधिकार के साथ उगत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन स्तंभ हैं।
  • भगवान जो कुछ करता है, वह भलाई के लिए ही करता है।
  • जीवन को टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता, उसका पूर्णता में ही विचार किया जाना चाहिए।
  • साहित्य और राजनीति के कोई अलस-अलग खाने नहीं होते। जो राजनीति में रुचि लेता है, वह साहित्य के लिए समय नहीं निकाल पाता और साहित्यकार राजनीति के लिए समय नहीं दे पाता, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं, जो दोनों के लिए समय देते हैं। वे अभिनन्दनीय हैं।
  • साहित्यकार का हृदय दया, क्षमा, करुणा और प्रेम से आपूरित रहता है। इसलिए वह खून की होली नहीं खेल सकता।
  • मेरे भाषणों में मेरा लेखक ही बोलता है, पर ऐसा नहीं कि राजनेता मौन रहता है। मेरे लेखक और राजनेता का परस्पर समन्वय ही मेरे भाषणों में उतरता है। यह जरूर है कि राजनेता ने लेखक से बहुत कुछ पाया है। साहित्यकार को अपने प्रति सच्चा होना चाहिए। उसे समाज के लिए अपने दायित्व का सही अर्थों में निर्वाह करना चाहिए। उसके तर्क प्रामाणिक हो। उसकी दृष्टि रचनात्मक होनी चाहिए। वह समसामयिकता को साथ लेकर चले, पर आने वाले कल की चिंता जरूर करे।
  • निराशा की अमावस की गहन निशा के अंधकार में हम अपना मस्तक आत्म-गौरव के साथ तनिक ऊंचा उठाकर देखें। विश्व के गगनमंडल पर हमारी कलित कीर्ति के असंख्य दीपक जल रहे हैं।
  • सदा से ही हमारी धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा का केन्द्र बिंदु व्यक्ति रहा है। हमारे धर्मग्रंथों और महाकाव्यों में सदैव यह संदेश निहित रहा है कि समस्त ब्रह्मांड और सृष्टि का मूल व्यक्ति और उसका संपूर्ण विकास है।
  • शिक्षा आज व्यापार बन गई है। ऐसी दशा में उसमें प्राणवत्ता कहां रहेगी? उपनिषदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों की उगेर हमारा ध्यान नहीं जाता। आज विद्यालयों में छात्र थोक में आते हैं।
  • शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत कर सकते हैं।
  • निरक्षरता और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है।
  • शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। ऊंची-से-ऊंची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए।
  • मोटे तौर पर शिक्षा रोजगार या धंधे से जुड़ी होनी चाहिए। वह राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में सहायक हो और व्यक्ति को सुसंस्कारित करे।
  • हिन्दी की कितनी दयनीय स्थिति है, यह उस दिन भली-भांति पता लग गया, जब भारत-पाक समझौते की हिन्दी प्रति न तो संसद सदस्यों को और न हिन्दी पत्रकारों को उपलब्ध कराई गई।
  • हिन्दी वालों को चाहिए कि हिन्दी प्रदेशों में हिन्दी को पूरी तरह जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिष्ठित करें।
  • हिन्दी को अपनाने का फैसला केवल हिन्दी वालों ने ही नहीं किया। हिन्दी की आवाज पहले अहिन्दी प्रान्तों से उठी। स्वामी दयानन्दजी, महात्मा गांधी या बंगाल के नेता हिन्दीभाषी नहीं थे। हिन्दी हमारी आजादी के आनंदोलन का एक कार्यक्रम बनी।
  • भारत की जितनी भी भाषाएं हैं, वे हमारी भाषाएं हैं, वे हमारी अपनी हैं, उनमें हमारी आत्मा का प्रतिबिम्ब है, वे हमारी आत्माभिव्यक्ति का साधन हैं। उनमें कोई छोटी-बड़ी नहीं है।
  • राष्ट्र की सच्ची एकता तब पैदा होगी, जब भारतीय भाषाएं अपना स्थान ग्रहण करेंगी।
  • हिन्दी का किसी भारतीय भाषा से झगड़ा नहीं है। हिन्दी सभी भारतीय भाषाओं को विकसित देखना चाहती है, लेकिन यह निर्णय संविधान सभा का है कि हिन्दी केन्द्र की भाषा बने।
  • हमारा लोकतंत्र संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र की परंपरा हमारे यहां बड़ी प्राचीन है। चालीस साल से ऊपर का मेरा संसद का अनुभव कभी-कभी मुझे बहुत पीड़ित कर देता है। हम किधर जा रहे हैं?
  • भारत के लोग जिस संविधान को आत्म समर्पित कर चुके हैं, उसे विकृत करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता।
  • लोकतंत्र बड़ा नाजुक पौधा है। लोकतंत्र को धीरे- धीरे विकसित करना होगा। केन्द्र को सबको साथ लेकर चलने की भावना से आगे बढ़ना होगा।
  • अगर किसी को दल बदलना है तो उसे जनता की नजर के सामने दल बदलना चाहिए। उसमें जनता का सामना करने का साहस होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र को तभी शक्ति मिलेगी जब हम दल बदलने वालों को जनता का सामना करने का साहस जुटाने की सलाह देंगे।
  • लोकतंत्र वह व्यवस्था है, जिसमें बिना मृणा जगाए विरोध किया जा सकता है और बिना हिंसा का आश्रय लिए शासन बदला जा सकता है।
  • जातिवाद का जहर समाज के हर वर्ग में पहुंच रहा है। यह स्थिति सबके लिए चिंताजनक है। हमें सामाजिक समता भी चाहिए और सामाजिक समरसता भी चाहिए।
  • कुर्सी की मुझे कोई कामना नहीं है। मुझे उन पर दया आती है जो विरोधी दल में बैठने का सम्मान छोड्‌कर कुर्सी की कामना से लालायित होकर सरकारी पार्टी का पन्तु पकड़ने के लिए लालायित हैं।
  • भारत की सुरक्षा की अवधारणा सैनिक शक्ति नहीं है। भारत अनुभव करता है सुरक्षा आन्तरिक शक्ति से आती है।
  • बिना हमको सफाई का मौका दिए फांसी पर चढ़ाने की कोशिश मत करिए, क्योंकि हम मरते-मरते भी लड़ेंगे और लड़ते-लड़ते भी मरने को तैयार हैं।
  • राजनीति काजल की कोठरी है। जो इसमें जाता है, काला होकर ही निकलता है। ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में ईमानदार होकर भी सक्रिय रहना, बेदाग छवि बनाए रखना, क्या कठिन नहीं हो गया है?
  • मेरा कहना है कि सबके साथ दोस्ती करें लेकिन राष्ट्र की शक्ति पर विश्वास रखें। राष्ट्र का हित इसी में है कि हम आर्थिक दृष्टि से सबल हों, सैन्य दृष्टि से स्वावलम्बी हों।
  • पाकिस्तान कश्मीर, कश्मीरियों के लिए नहीं चाहता। वह कश्मीर चाहता है पाकिस्तान के लिए। वह कश्मीरियों को बलि का बकरा बनाना चाहता है।
  • मैं पाकिस्तान से दोस्ती करने के खिलाफ नहीं हूं। सारा देश पाकिस्तान से संबंधों को सुधारना चाहता है, लेकिन जब तक कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा कायम है, तब तक शांति नहीं हो सकती।
  • पाकिस्तान हमें बार-बार उलझन में डाल रहा है, पर वह स्वयं उलझ जाता है। वह भारत के किरीट कश्मीर की ओर वक्र दृष्टि लगाए है। कश्मीर भारत का अंग है और रहेगा। हमें पाकिस्तान से साफ-साफ कह देना चाहिए कि वह कश्मीर को हथियाने का इरादा छोड़ दे।
  • दरिद्रता का सर्वथा उन्मूलन कर हमें प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार कार्य लेना चाहिए और उसकी आवश्यकता के अनुसार उसे देना चाहिए।
  • संयुक्त परिवार की प्रणाली सामाजिक सुरक्षा का सुंदर प्रबंध था, जिसने मार्क्स को भी मात कर दिया था।
  • समता के साथ ममता, अधिकार के साथ आत्मीयता, वैभव के साथ सादगी-नवनिर्माण के प्राचीन आधारस्तम्भ हैं। इन्हीं स्तम्भों पर हमें भावी भारत का भवन खड़ा करना है।
  • अगर भ्रष्टाचार का मतलब यह है कि छोटी-छोटी मछलियों को फांसा जाए और बड़े-बड़े मगरमच्छ जाल में से निकल जाएं तो जनता में विश्वास पैदा नहीं हो सकता। हम अगर देश में राजनीतिक और सामाजिक अनुशासन पैदा करना चाहते हैं तो उसके लिए भ्रष्टाचार का निराकरण आवश्यक है।
  • अन्न उत्पादन के द्वारा आत्मनिर्भरता के बिना हम न तो औद्योगिक विकास का सुदृढ़ ढांचा ही तैयार कर सकते है और न विदेशों पर अपनी खतरनाक निर्भरता ही समाप्त कर सकते हैं।
  • कृषि-विकास का एक चिंताजनक पहलू यह है कि पैदावार बढ़ते ही दामों में गिरावट आने लगती है। हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसकी कीर्ति के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे पग नहीं हटाएंगे।
  • मानव और मानव के बीच में जो भेद की दीवारें खड़ी हैं, उनको ढहाना होगा, और इसके लिए एक राष्ट्रीय अभियान की आवश्यकता है।
  • अस्पृश्यता कानून के विरुद्ध ही नहीं, वह परमात्मा तथा मानवता के विरुद्ध भी एक गंभीर अपराध है।
  • इतिहास ने, भूगोल ने, परम्परा ने, संस्कृति ने, धर्म ने, नदियों ने हमें आपस में बांधा है।

कविता - एक बरस बीत गया

सम्पादन

झुलासाता जेठ मास

शरद चांदनी उदास

सिसकी भरते सावन का

अंतर्घट रीत गया

एक बरस बीत गया


सीकचों मे सिमटा जग

किंतु विकल प्राण विहग

धरती से अम्बर तक

गूंज मुक्ति गीत गया

एक बरस बीत गया


पथ निहारते नयन

गिनते दिन पल छिन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया



कविता - अपने ही मन से कुछ बोलें

सम्पादन

क्या खोया, क्या पाया जग में

मिलते और बिछुड़ते मग में

मुझे किसी से नहीं शिकायत

यद्यपि छला गया पग-पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!


पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी

जीवन एक अनन्त कहानी

पर तन की अपनी सीमाएँ

यद्यपि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!


जन्म-मरण अविरत फेरा

जीवन बंजारों का डेरा

आज यहाँ, कल कहाँ कूच है

कौन जानता किधर सवेरा

अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!

अपने ही मन से कुछ बोलें!

बाह्य सूत्र

सम्पादन